Tuesday, September 1, 2015

परमात्म नीति – (38) -महत्वपूर्ण दौड़ नहीं, महत्वपूर्ण है लक्ष्य की स्पष्टता और मार्ग की पहिचान

इसी आलेख से -
बिना विचारे बस दौड़पड़ने वाले लोग फिसल जाते हें, भटक जाते हें, थक जाते हें, हताश और निराश हो जाते हें, वे लक्ष्य तक नहीं पहुँचते हें; कभी भी नहीं.


- परमात्म नीति – (38)




- महत्वपूर्ण दौड़ नहीं, महत्वपूर्ण है लक्ष्य की 

स्पष्टता और मार्ग की पहिचान






-     साधक को लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए, मार्ग तो धुंधला और अस्पष्ट हो तो हो.
यदि लक्ष्य स्पष्ट और संशय रहित है तो मार्ग तो मिल ही जाएगा.

-    यदि लक्ष्य स्पष्ट है तो उसकी प्राप्ति के उपाय तो प्रयोग करते हुए ही खोजने होंगे.
लक्ष्य स्पष्ट होने पर सहचारी (accompanies) सहयोगी हो सकते हें पर लक्ष्य अज्ञात होने पर वे बोझ ही बने रहेंगे, तब वे क्या करें और हम उनसे क्या सहयोग लें?

-    लक्ष्य के प्रति अस्पष्टता, अनिश्चय और असमंजस व्यक्ति को बोझिल बनाए रखता है, अनंत बोझ से दबा हुआ बोझिल.


-    लक्ष्य की स्पष्टता से जगत के अन्य क्रियाकलाप हमारे लिए अकृत्य हो जातें हें, हमें कुछ और करना शेष ही नहीं रहता है, हमारे चित्त पर अन्य कुछ भी करने का भार नहीं रहता है.


-    “पूर्व चलने के बटोही लक्ष्य की पहिचान करले”

जल्दी चलपडना और तेजी से दौड़ना महत्वपूर्ण नहीं है, लक्ष्य की पहिचान ही महत्वपूर्ण है, यदि लक्ष्य की संशय रहित सही पहिचान है तो मार्ग लंबा नहीं है, दूरी महत्वपूर्ण भी नहीं है, चलते रहनेवाला कभी न कभी पहुँच ही जाता है यदि भटक न जाए.

- बिना विचारे बस दौड़पड़ने वाले लोग फिसल जाते हें, भटक जाते हें, थक जाते हें, हताश और निराश हो जाते हें, वे लक्ष्य तक नहीं पहुँचते हें; कभी भी नहीं.


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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 


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