कल परमात्म नीति -(46) में हमने पढ़ा कि -
कुछ लोग तो सामान्य ही नहीं अति सामान्य बने रहना ही अपनी नियति मानकर वे जीवन काटने के लिए तैयार हो जाते हें.
इसके विपरीत कुछ लोगों को लगता है कि जरूर इन्हें (बे जो सफल दिखाई देते हें)किसी देवी-देवता या संत-महंत का आशीर्वाद प्राप्त है, या वे कोई जादूटोना या तंत्रमंत्र जानते हें, इसीलिये उनके सब काम चुटकियाँ बजाते ही हो जाते हें.
यह सोचकर वे लोग हमेशा बस उन चमत्कारी देवी-देवता, संत-महंत, मंदिर या तीर्थ, जादूटोने या तंत्रमंत्र की खोज में लगे रहते हें जो उनकी नैया पार लगादे.
अंतत: ऐसे लोगों के हाथ भी कुछ नहीं लगता शिवाय इसके कि वे इन सबके चक्कर में अपनी शक्ति, समय व श्रम और बर्बाद करते रहते हें, फलस्वरूप वह भी गँवा बैठते हें जो उनके पास है,रूपया पैसा, चैन-शुकून, शक्ति-स्वास्थ्य, समय और उम्र.
एक बात और है कि बाबजूद निरंतर निराशा के, ये लोग अपने अनुभवों से सीखना भी नहीं जानते हें, ये सुधरना ही नहीं चाहते हें. लगातार असफलताओं के बाबजूद बस जुटे ही रहते हें, लगातार, बिना थके, बिना रुके, अनवरत, अहिर्निश.
ये वे लोग हें जिनमें वे सब गुण तो मौजूद हें जो सफलता पाने के लिए आवश्यक हें शिवाय दिशा के.
ये असफल इसलिए हें कि इनकी दिशा गलत है. इनकी इक्षाशक्ति, द्रढ़ता, संकल्प, प्रयत्न, श्रम और समर्पण में कोई कमी नहीं, जो सफलता के लिए आवश्यक हें.
कहीं हम भी दिशाहीन तो नहीं ?
कैसे होते हें वे, जो महान हें, जो सफल हें ?
जानने के लिए पढ़िए - (परमात्म नीति - (48)
कल
यह क्रम जारी रहेगा.
कुछ लोग तो सामान्य ही नहीं अति सामान्य बने रहना ही अपनी नियति मानकर वे जीवन काटने के लिए तैयार हो जाते हें.
अब आगे पढ़ें -
- परमात्म नीति - (47)
- कहीं हम भी दिशाहीन तो नहीं ?
- कैसे होते हें वे, जो महान हें, जो सफल हें ?
इसके विपरीत कुछ लोगों को लगता है कि जरूर इन्हें (बे जो सफल दिखाई देते हें)किसी देवी-देवता या संत-महंत का आशीर्वाद प्राप्त है, या वे कोई जादूटोना या तंत्रमंत्र जानते हें, इसीलिये उनके सब काम चुटकियाँ बजाते ही हो जाते हें.
यह सोचकर वे लोग हमेशा बस उन चमत्कारी देवी-देवता, संत-महंत, मंदिर या तीर्थ, जादूटोने या तंत्रमंत्र की खोज में लगे रहते हें जो उनकी नैया पार लगादे.
अंतत: ऐसे लोगों के हाथ भी कुछ नहीं लगता शिवाय इसके कि वे इन सबके चक्कर में अपनी शक्ति, समय व श्रम और बर्बाद करते रहते हें, फलस्वरूप वह भी गँवा बैठते हें जो उनके पास है,रूपया पैसा, चैन-शुकून, शक्ति-स्वास्थ्य, समय और उम्र.
एक बात और है कि बाबजूद निरंतर निराशा के, ये लोग अपने अनुभवों से सीखना भी नहीं जानते हें, ये सुधरना ही नहीं चाहते हें. लगातार असफलताओं के बाबजूद बस जुटे ही रहते हें, लगातार, बिना थके, बिना रुके, अनवरत, अहिर्निश.
ये वे लोग हें जिनमें वे सब गुण तो मौजूद हें जो सफलता पाने के लिए आवश्यक हें शिवाय दिशा के.
ये असफल इसलिए हें कि इनकी दिशा गलत है. इनकी इक्षाशक्ति, द्रढ़ता, संकल्प, प्रयत्न, श्रम और समर्पण में कोई कमी नहीं, जो सफलता के लिए आवश्यक हें.
कहीं हम भी दिशाहीन तो नहीं ?
कैसे होते हें वे, जो महान हें, जो सफल हें ?
जानने के लिए पढ़िए - (परमात्म नीति - (48)
कल
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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.
- घोषणा
यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा.
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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