अधिकतम लोग तो यह मानकर कि -
“हम वे नहीं, हम उन जैसे नही.
वे भिन्न हें, महान हें. हम भिन्न हें, सामान्यजन हें.
हमें न तो उन जैसे सपने ही देखने चाहिए और न ही हमें उनकी देखादेखी करने का अधिकार है.
हमें अपनी सीमाएं पहिचाननी चाहिए और अपनी सीमाओं में ही रहना चाहिए”.
- ऐसा मानकर सामान्य ही नहीं अति सामान्य बने रहना ही अपनी नियति मानकर वे जीवन काटने के लिए तैयार हो जाते हें.
हम सभी लोग जीवन में उंचाइयां छूने की और महान उपलब्धियां हासिल करने की ख्वाहिशें रखते हें, उसके लिए प्रयत्न भी करते हें पर हमारी उपलब्धियां बहुत कम होती हें और कदम-कदम पर अनेकों कठिनाइयों का सामना होता ही रहता है.
एक ओर हम हें जो कुछ भी नहीं कर पाए और दूसरी ओर अनेकों वे लोग हें जो आकाश में ऊँचे उड़ रहे हें, नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हें.
हमें लगता है वे कुछ अलग हें, वे हम जैसे नहीं, वे हममें से नहीं. शायद
वे चमत्कारी लोग हें या उन्हें किसी महाशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है या
कोई वरदान मिल गया है.
अंतत: होता यह है कि अधिकतम लोग तो यह मानकर कि “हम वे नहीं, हम उन जैसे नही. वे भिन्न हें, महान हें. हम भिन्न हें, सामान्यजन हें. हमें न तो उन जैसे सपने ही देखने चाहिए और न ही हमें उनकी देखादेखी करने का अधिकार है. हमें अपनी सीमाएं पहिचाननी चाहिए और अपनी सीमाओं में ही रहना चाहिए”.
इसप्रकार बस सामान्य ही नहीं अति सामान्य बने रहना ही अपनी नियति मानकर वे जीवन काटने के लिए तैयार हो जाते हें.
“हम वे नहीं, हम उन जैसे नही.
वे भिन्न हें, महान हें. हम भिन्न हें, सामान्यजन हें.
हमें न तो उन जैसे सपने ही देखने चाहिए और न ही हमें उनकी देखादेखी करने का अधिकार है.
हमें अपनी सीमाएं पहिचाननी चाहिए और अपनी सीमाओं में ही रहना चाहिए”.
- ऐसा मानकर सामान्य ही नहीं अति सामान्य बने रहना ही अपनी नियति मानकर वे जीवन काटने के लिए तैयार हो जाते हें.
- परमात्म नीति - (46)
- कहीं हम भी ऐसे ही तो नहीं हें ?
कहीं हम भी उन्हीं में से एक तो नहीं ?
हम सभी लोग जीवन में उंचाइयां छूने की और महान उपलब्धियां हासिल करने की ख्वाहिशें रखते हें, उसके लिए प्रयत्न भी करते हें पर हमारी उपलब्धियां बहुत कम होती हें और कदम-कदम पर अनेकों कठिनाइयों का सामना होता ही रहता है.
एक ओर हम हें जो कुछ भी नहीं कर पाए और दूसरी ओर अनेकों वे लोग हें जो आकाश में ऊँचे उड़ रहे हें, नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हें.
हमें लगता है वे कुछ अलग हें, वे हम जैसे नहीं, वे हममें से नहीं. शायद
वे चमत्कारी लोग हें या उन्हें किसी महाशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त है या
कोई वरदान मिल गया है.
अंतत: होता यह है कि अधिकतम लोग तो यह मानकर कि “हम वे नहीं, हम उन जैसे नही. वे भिन्न हें, महान हें. हम भिन्न हें, सामान्यजन हें. हमें न तो उन जैसे सपने ही देखने चाहिए और न ही हमें उनकी देखादेखी करने का अधिकार है. हमें अपनी सीमाएं पहिचाननी चाहिए और अपनी सीमाओं में ही रहना चाहिए”.
इसप्रकार बस सामान्य ही नहीं अति सामान्य बने रहना ही अपनी नियति मानकर वे जीवन काटने के लिए तैयार हो जाते हें.
कहीं हम भी ऐसे ही तो नहीं हें ?
कहीं हम भी उन्हीं में से एक तो नहीं ?
यदि हाँ , तो कल फिर पढ़िए , परमात्म नीति - (47)
यह क्रम जारी रहेगा.
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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.
- घोषणा
यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा.
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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