Tuesday, September 8, 2015

परमात्म नीति - (45) - "वक्त के तेबर " - (लिखी जारही नवीनतम कहानी का एक अंश )

लिखी जारही नवीनतम कहानी का एक अंश -

इसी अंश में से -


परिवर्तन तो कोई भी अन्तिम नहीं होता है, जब वह समय न रहा तो यह भी कैसे हमेशा ही बना रहेगा ? 
एक दिन यह फिर करबट लेगा, फिर बदलेगा तो फिरसे सबकुछ बदल जाएगा."
"एक बार फिर वही जीहुजूरी, सलाम, घिघियाती, कांपती अनुनयभरी जबान, झुकी हुई नजरें और बंधे हुए हाथ."


विपरीत संयोगों में धैर्य धारण करने का मूल मंत्र  जानने के लिए पढ़ें -


- परमात्म नीति - (45)

"वक्त के तेबर "







कितना निष्ठुर और अवसरवादी है यह ज़माना कि जबतक आशा जाग्रत रहे तो हाथबांधे आगे-पीछे घूमता है, चिरौरियाँ करता है, तिरस्कार, दुत्कार और फटकार भी सर झुकाकर, हंसकर स्वीकारता है और ऊपर से धन्यबाद और कहता है. 

मान-अपमान की परवाह नहीं करता है. अपमान को ही मान मानकर पी जाता है.
पर जब एक बार आशा टूट जाए तो सबकुछ तत्क्षण बदल जाता है.

फिर तो वही आदमी आदमी सा नहीं लगता, मानो बनस्पति (vegitable) ही होगया हो. 

उसके सामने ही उसकी अनदेखी, उपेक्षा और तिरस्कार करने से नहीं चूकता है यह, जबान लड़ाने लगता है. 

जिससे कल तक आँख मिलाने से हिचकता था, गल्ती से आँख मिल जाए तो सहम जाता था उसीको आज आँखें दिखाने लगता है, भली-बुरी कहने लगता है, हिदायतें, उपदेश और यहाँ तक कि धमकियां भी देने लगता है.








हालांकि कुछ भी तो नहीं बदलता है, लोग तो वही रहते हें बस द्रष्टि के बदलजाने से सभीकुछ इस तरह बदल जाता है.

परिवर्तन तो कोई भी अन्तिम नहीं होता है, जब वह समय न रहा तो यह भी कैसे हमेशा ही बना रहेगा ? 
एक दिन यह फिर करबट लेगा, फिर बदलेगा तो फिरसे सबकुछ बदल जाएगा. 
एक बार फिर वही जीहुजूरी, सलाम, घिघियाती, कांपती अनुनयभरी जबान, झुकी हुई नजरें और बंधे हुए हाथ.







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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल    

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