Sunday, September 13, 2015

परमात्म नीति - (50) , कैसे बनें स्वप्न द्रष्टा ?

कल आपने पढ़ा -
"कि  महानलोग स्वप्नद्रष्टा होते हें ", आगे पढ़िए -

- परमात्म नीति - (50)


- कैसे बनें स्वप्न द्रष्टा ?
- सामान्यजन को कौन रोकता है स्वप्न देखने से ?






सामान्यजन जीवन के कठोर यथार्थ से ही इतना पीड़ित और व्यथित होता है, उसमें इतना निमग्न (involved) और उलझा हुआ रहता है कि उसे अव्यक्त (unseen) की कल्पना व साधना के लिए अवकाश ही नहीं रहता है. 
यदि वर्तमान से उबरे (recover) तो भविष्य में विचरे!
यदि यथार्थ से निपटे (dealt) तो कल्पना को न्योंते (invite)!

दु:स्वप्न कोई नहीं देखना चाहता है, सभी लोग मात्र सतरंगी स्वप्न ही देखना पसंद करते हें. 
वे भाग्यहीन लोग जिन्होंने अपने जीवन में अच्छा कुछ देखा ही नहीं, अपने बारे में कोई अच्छी कल्पना कर ही नहीं पाते हें और दुर्भाग्य की कल्पना कोई क्योंकर करे? बस इसीलिये सामान्यजन मात्र वर्तमान के यथार्थ में ही उलझे रहते हें, वे स्वप्न देखते ही नहीं हें.

आगे बढ़ने के लिये आवश्यक यह है कि हम वर्तमान से ऊपर उठें, यदि हम वर्तमान में ही गले तक डूबे रहेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे?
आजतक विजयी वही हुए हें जिन्होंने वर्तमान पर विजय पाई है.

यदि हम सामान्य ही सोचेंगे तो सामान्य ही बने रहेंगे, यदि हमें विशिष्ट बनना है तो विशिष्ट सोचना होगा .

जो प्रकट है (प्रतिकूलता) उससे उबरना होगा, जो प्रकट नहीं है (अनुकूलता) उसके स्वप्न देखने होंगे, सफलता अवश्य मिलेगी.


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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 

यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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