Tuesday, September 15, 2015

परमात्म नीति - (52) - महान लोग विवेकशील व विचारवान होते हें , सामान्यजन विचारविमर्श में समय लगाने को वक्त की बर्बादी मानता है.



कल आपने पढ़ा -

"महान लोग दूरद्रष्टि होते हें , उनका सोच बड़ा होता है "
अब आगे पढ़िए -

परमात्म नीति - (52) -


- महान लोग विवेकशील व विचारवान होते हें – 
- सामान्यजन विचारविमर्श में समय लगाने को वक्त की बर्बादी मानता है.





महानलोग कोई भी काम करने से पहिले उसके बारे में गहराई से, हर पहलू से, गुणदोषों के बारे में सम्पूर्ण विचार कर लेते. उनका सिद्दांत होता है कि “पूर्व चलने से बटोही बाट की पहिचान करले”. 
आवश्यक्ता होने पर वे योग्य पात्रों के साथ विचारविमर्श भी करते हें, तभी आगे बढ़ते हें.






यदि मैं पूंछू कि कौनसा काम बड़ा होता है, योजना बनाना या उसे क्रियान्वित करना?
सामान्यजनों का जबाब होगा कि "योजना बनाने में क्या करना है, कोई भी बना सकता है, बस बैठे-बैठे विचार ही तो करना है, बातें ही तो बनानी (करनी) हें? क्रियान्वित करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है------"
उक्त कथन के विपरीत महान लोग योजनायें बनाने पर ही अधिक ध्यान देते हें. उनका मानना होता है कि "एक बार निर्दोष (foolproof) योजना बन जाए, तब करना शेष ही क्या रहता है? 
महान (सफल) लोग मानते हें कि यदि कहीं जाना है तो सही, संक्षिप्त और सुरक्षित मार्ग कौनसा है उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी करलेनी चाहिए. ताकि-
- हम अपने गंतव्य तक पहुँच सकें, भटक न जाएँ.
- कमसे कम समय और श्रम में हम अपने गंतव्य तक पहुँच जाएँ.
- अपने गंतव्य तक हम सुरक्षित पहुंचें, कहीं कोई खतरा न हो.






सामान्यजन सोचविचार में वक्त बिताने को वक्त की बर्बादी मानता है, वह तो बस दौड़ पड़ने में, कर गुजरने में विश्वास रखता है. 


उसका कहना होता है कि - "जितनी देर तुम यहाँ बैठे बातें ही बनाते रहोगे उतनी देर में तो हम आधे रास्ते पहुंच जायेंगे.






वह यह विचार ही नहीं करता है कि -
- यदि बिना विचारे विपरीत दिशा में चल पड़े तो जितना दौड़ेंगे उतने ही अपने लक्ष्य से दूर होते जायेंगे.
- इसमें श्रम भी व्यर्थ जाएगा और वक्त भी बर्बाद होगा. 
- रास्ते में यदि कोई खतरा होगा तो जाने हमारा क्या होगा?

एक बात और है - यदि कार्य सोचविचारकर व अन्य सहयोगियों से विचारविमर्श करके किया जाए तो असफलता मिलने पर हम हंसी के पात्र भी नहीं बनते हें.







कहा भी है न -

"बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताय 
 काम बिगारे आपनों, जग में होत हंसाय"

यूं भी देखिये न ! जगत का यथार्थ क्या है?


यहाँ काम करने वाला मजदूर कहलाता है व सबसे कम पारिश्रमिक पाता है, उसे निर्देश देने वाला और उसके काम पर नजर रखने वाला (supervisor) उससे ज्यादा पारिश्रमिक पाता है व योजना बनाने वाला इंजीनियर सबसे अधिक पारिश्रमिक और सम्मान भी पाता है.


यूं भी स्पष्ट तो है कि यदि योजना बनाने वाला  गलती करेगा तो मात्र कागज़ फाड़ना होगा पर कारीगर/मजदूर गलती करेगा तो बनीबनायी इमारत तोडनी पड़ेगी.







क्या यही उचित नहीं कि कागज़ पर अभ्यास करके समस्त संभावित गलतियों को दूर कर लिया जाए और उसके बाद निश्चिन्त होकर अपनी योजना को क्रियान्वित किया जाए ?

तथास्तु !


आगे पढ़िए - "महानलोग अपने विचारों में दृढ होते हें " 
परमात्म नीति - (53)

कल -


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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 


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