क्योंकि अभी म्रत्यु है ही कहाँ कि उससे संघर्ष किया जाए? म्रत्यु तो अभी आयी ही नहीं है.
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
यदि हम कहें कि – “वह १० दिन से अस्पताल में मृत्यु से संघर्ष कर रहा है”
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
यदि हम कहें कि – “वह १० दिन से अस्पताल में मृत्यु से संघर्ष कर रहा है”
तो क्या यह वाक्य सही है?
नहीं!
क्योंकि अभी म्रत्यु है ही कहाँ कि उससे संघर्ष किया जाए? म्रत्यु तो अभी आयी ही नहीं है.
अभी तो वह जीवन जीरहा है, अपनी सम्पूर्ण जिजीबिषा के साथ.
इस प्रक्रिया के साथ मौत को जोड़ना ही गलत है.
म्रत्यु होते ही तो यह जीवन समाप्त होजाता है तब उसमें करने को बचता ही क्या है? जो भी करना है वह तो जीवन के दौरान, जीवन के लिए ही है.
समाधिमरण या सल्लेखना न तो म्रत्यु को आमंत्रण है और न ही जीवन के प्रति व्यामोह, सल्लेखना तो साधक की भूमिका के अनुरूप वीतरागी वृत्ति है.
सल्लेखना साधककी म्रत्युपर (मौत के खौफ पर एवं जीवन के लोभ पर) विजय है, यह मौत की लालसा नहीं.
अरे! मृत्यु के महाखौफ में , मरते-मरते जीवन बीता
अहो! कोई पल इस जीवन का, इसके भयसे नहीं था रीता
एक समय की इस म्रत्युने,लीललिया जीवन का छिन-छीन
मुक्त हुआ मैं,छोड़ चला जग, है आज मौत का अंतिमदिन
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