ऐ मेरे वतन के लोगों ! बधाई !
आखिर हमें एक लूला लंगडा लोकपाल मिल ही गया .
इस लूले लंगड़ेपन का श्रेय सिर्फ सरकार को ही नहीं जाता , सम्पूर्ण विपक्ष भी इसके लिए समान रूप से जिम्मेदार है , अन्यथा यदि विपक्ष एक मजबूत लोकपाल चाहता तो वह संवैधानिक दर्जे के मामले की तरह ही इसको भी इस कमजोर रूप में पास नहीं होने देता .
अब एक बात जान लीजिये क़ि यदि मजबूत लोकपाल चाहिए तो इस संसद से तो मिलेगा नहीं , इस संसद से तो क्या किसी संसद से नहीं मिलेगा .
आज जो लोग सड़क पर खड़े मजबूत लोकपाल की मांग कर रहे हें यदि कल उन्हें ही संसद में बिठा दिया जाये तो उन्हें भी वह मजबूत लोकपाल डराने और चिन्तित करने लगेगा .
जालिम ये सफेदी चीज ही ऐसी है , सबको डर लगने लगता है क़ि इसकी सफेदी पर कोई दाग न लग जाए .
मन के मैलेपन का किसी को कोई डर नहीं , काला मन चलेगा बस ऊपर से सफ़ेद झक कुर्ता होना चाहिए , कुरते पर दाग नहीं चाहिए .
ठीक है संसद सर्वोपरि होनी चाहिए पर तब संसद ही क्यों नहीं लोकपाल बन जाती , एक जांच एजेंसी संसद के प्रति जबाबदेह हो और प्राप्त शिकायतों की जांच करे और निष्कर्षों पर संसद कार्यवाही करे --------------------------
No comments:
Post a Comment