Tuesday, January 17, 2012

जो यह मानते हें क़ि वे व्यस्त हें दरअसल वे अस्तव्यस्त हें


जो यह मानते हें क़ि वे व्यस्त हें दरअसल वे अस्तव्यस्त हें 

प्रकृति में न तो कुछ कम है और न ही अधिक , सब कुछ पर्याप्त है .साथ ही कुछ ऐसी शक्तियां भी विद्यमान हें जो उनका संतुलन बनाए रखती हें और कुछ भी कम या अधिक नहीं होने देती हें .
ऐसे में जब भी हमें कहीं कुछ कम या कहीं कुछ अधिक दिखाई देता है तो वह हमारी कमी है ,भ्रम है .
यह़ी बात समय के बारे में भी लागू होती है .
आज अमूमन सभी लोगों को इस बात की शिकायत बनी ही रहती है क़ि वे बहुत व्यस्त हें और उनके पास समय की कमी है , पर यह सही नहीं है .
यदि हम व्यस्त दीखते हें और हमारे काम अधूरे रह जाते हें या समय पर नहीं हो पाते हें इसका मतलब है क़ि हमें समय को मैनेज करना नहीं आता है , हम अस्तव्यस्त हें , अन्यथा दिन के २४ घंटे , हफ्ते के ७ दिन या बर्ष के ३६५ दिन हर तरह से पर्याप्त हें .
दुनिया में आज तक जो कुछ भी हो सका है और जिन महान लोगों ने जो भी महान उपलब्धियां हासिल की हें वे सब इन्हीं घंटों और दिनों की सीमाओं में रहकर की हें .
हमारे जीवन के जो भी आवश्यकताएं हें वे इब सीमाओं में पूरी की जा सकती हें ,फिर भी जो यह नहीं कर पाता है वह कहीं न कहीं अपना समय बर्बाद कर रहा है , उसे आत्म विश्लेषण करना चाहिए क़ि उसके चिंतन या कार्य प्रणाली में कमी कहाँ पर है ?

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