पता नहीं यह आत्मा फातमा कुछ होता भी है या नहीं ,फिर हम क्यों व्यर्थ ही चक्कर में पड़ें .
अरे ! तुझे यह चक्कर में पड़ने जैसा लगता है पर यह तो भव भ्रमण के चक्कर से निकलने की बात है .
यदि तुझे नहीं मालूम क़ि यह आत्मा होता है या नहीं तो मालूम करले , निश्चय करले , यदि तू नहीं करेगा और अभी नहीं करेगा तो कौन और कब करेगा ?
यदि तूने अभी यह काम नहीं किया और जीवन बीत गया तो सचमुच ही तू भव भ्रमण के लम्बे चक्कर में फंस जाएगा .
जब तू जन्मा था तब तुझे क्या क्या मालूम था ? यदि यूं ही छोड़ दिया होता तो क्या अब तक कुछ भी सीख पाता ? पर आज तो तू हर काम में कितना पारंगत हो गया है , दुनिया दारी में , बिषय कषाय में , व्यापार में , राजनीति में , अर्थ व्यवस्था में , खेलकूद में , शासन -प्रशासन में , अपराध करने में और अपराधी को पकड़ने में . अनन्त आकाश तक जा पहुंचा है , और परमाणु के भी टुकड़े कर डाले हें तूने .
जब इतना सब कुछ कर सकता है तो क्या इतना भी नहीं कर सकता है ?
जब अनन्त पर पदार्थों को जान सकता है तो क्या अपने आप को नहीं पहिचान सकता है ?
फिर क्यों छल करता है नादान ?
अपने को पहिचान !
इन्कार मत कर !
यह तो तेरे ही हित की बात है .
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