Sunday, March 18, 2012

अरे ! तुझे यह चक्कर में पड़ने जैसा लगता है पर यह तो भव भ्रमण के चक्कर से निकलने की बात है .जब अनन्त पर पदार्थों को जान सकता है तो क्या अपने आप को नहीं पहिचान सकता है ?


पता नहीं यह आत्मा फातमा कुछ होता भी है या नहीं ,फिर हम क्यों व्यर्थ ही चक्कर में पड़ें .
अरे ! तुझे यह चक्कर में पड़ने जैसा लगता है पर यह तो भव भ्रमण के चक्कर से निकलने की बात है .
यदि तुझे नहीं मालूम क़ि यह आत्मा होता है या नहीं तो मालूम करले , निश्चय करले , यदि तू नहीं करेगा और अभी नहीं करेगा तो कौन और कब करेगा ?
यदि तूने अभी यह काम नहीं किया और जीवन बीत गया तो सचमुच ही तू भव भ्रमण के लम्बे चक्कर में फंस जाएगा .
जब तू जन्मा था तब तुझे क्या क्या मालूम था ? यदि यूं ही छोड़ दिया होता तो क्या अब तक कुछ भी सीख पाता ? पर आज तो तू हर काम में कितना पारंगत हो गया है , दुनिया दारी में , बिषय कषाय में , व्यापार में , राजनीति में , अर्थ व्यवस्था में , खेलकूद में , शासन -प्रशासन में , अपराध करने में और अपराधी को पकड़ने में . अनन्त आकाश तक जा पहुंचा है , और परमाणु  के भी टुकड़े कर डाले हें तूने .
जब इतना सब कुछ कर सकता है तो क्या इतना भी नहीं कर सकता है ? 
जब अनन्त पर पदार्थों को जान सकता है तो क्या अपने आप को नहीं पहिचान सकता है ?
फिर क्यों छल करता है नादान ?
अपने को पहिचान !
इन्कार मत कर !
यह तो तेरे ही हित की बात है .

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