Thursday, June 14, 2012

इसलिए मैं कहता हूँ क़ि यदि सफल होना है तो समर्पण चाहिए , सम्पूर्ण समर्पण


हर काम समर्पण माँगता है 
जहाँ समर्पण है वहां सफलता है 
मैं कहना पसंद नहीं करूंगा क़ि जितना समर्पण उतनी सफलता .
क्योंकि सफलता आंशिक नहीं हुआ करती .
लोग चाहे कुछ भी कहें .
सिर्फ दो ही वस्तुएं हें -
" सफलता और असफलता "
या तो कोई सफल होता है और यदि सफल नहीं हुआ तो वह असफल है .
यदि कोई एवरेस्ट पर चढ़ सका , पहुँच सका तो वह सफल है और यदि नहीं पहुँच सका तो असफल , जो एवरेस्ट पर पहुँच नहीं सका वह एवरेस्ट विजेता नहीं कहला सकता है , चाहे वह एवरेस्ट के कितने ही करीब क्यों न पहुँच चुका हो , अब कोई उसे आंशिक एवरेस्ट विजेता कहे तो आप ही कहिये क़ि क्या यह सही है , क्या यह उचित है ? 
क्या कोई आधा डाक्टर हो सकता है ! नहीं न ?
या तो वह डाक्टर होगा या नहीं होगा , कोई आधा डाक्टर नहीं हो सकता .
क्या आप उस आधे डाक्टर से अपना आपरेशन या इलाज कराना पसंद करेंगे जिसके इलाज से आपके स्वस्थ्य होने की ५० % संभावना हो ?



यदि कोई कहे क़ि मैं आधा तैयार हूँ तो क्या वह सत्य कह रहा है ? 
क्या वह तुरंत चल पड़ने की स्थिति में है ?
यदि नहीं ; तो वह तैयार नहीं है .
यदि हाँ ; तो वह पूरा तैयार है , आधा क्यों ?


किसी परिणाम को आंशिक सफलता कहना , असफलता को छुपाने का प्रयास है , असफलता को एक अच्छा नाम देने का असफल प्रयास .
आंशिक सफलता कोई वस्तु नहीं , मन को समझाने का तरीका है . " दिल बहलाने को ग़ालिब , यह ख्याल अच्छा है "
आधे मन से कोई काम करने का स्पष्ट मतलब है अपने सर पर असफलता का सेहरा बाँधने की तैयारी .
इसलिए मैं कहता हूँ क़ि यदि सफल होना है तो समर्पण चाहिए , सम्पूर्ण समर्पण .

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