कितना दुर्लभ है एक निंदक का मिलना -
दुनिया में एक निंदक का मिलना एक दुर्लभ संयोग है . यह तो वह " पतितपावन " है जो आपको पावन कर सकता है . ऐसा संयोग तो महाभाग्य से मिलता है
निंदक आपको आपके उन दुर्गुणों को चुनचुनकर दिखलाता है जिनके बारे में अन्यथा आपको जीवन भर पता ही नहीं चलता और आप जीवन भर उनका भार ढोते ही रहते .
यह हर किसी के नसीब में नहीं होता है .
भला कोई क्यों आपकी ओर ध्यान देवे , आपकी स्क्रीनिग करे , आपके अनन्त गुणों में से कुछ दुर्गुणों को छांटे और फिर उसके निष्कर्षों को आपसे बांटे ?
उसे क्या मिलने वाला है इस सब से , शिवाय कुछ बददुआओं और निंदा के .
यूं तो सभी लोग अपनों के बीच ही रहते हें और सदा ही अपने सगे सम्बन्धियों , मित्रों और शुभचिंतकों से ही घिरे रहते हें .
शुभचिंतकों की ये आदत होती है क़ि वे आपके दुर्गुणों या दोषों पर ध्यान ही नहीं देते हें और गुणों का बड़चडकर बखान करते हें , कभी कभी तो कमाल ही कर देते हें वे , जब आपके उन गुणों की प्रशंसा करने लगते हें जो आप में हें ही नहीं .
ऐसे में हमारे अवगुण उपेक्षित से ही बिना ध्यान दिए ही हमारे व्यक्तित्व में पड़े रहते हें , पलते-बढ़ते रहते हें .
कभी-कभार किसी का ध्यान उनकी ओर चला भी जाबे तो हमें बतलाये कौन , बिल्ली के गले घंटी कौन बांधे ?
फिर भला आपके दुर्गुण बतलाने में किसी का क्या प्रयोजन ?
ऐसे में यदि कोई हमारे ऊपर कृपा करके यह कार्य करता है तो वह तो हमारा परम उपकारी है .
सर्व प्रथम तो वह हमारे व्यक्तित्व और कर्तृत्व की पूरी स्क्रीनिंग करता है , विस्तृत समीक्षा करता है और उनमें विद्यमान छोटे से छोटे दोष हमें दिखलाता है , इससे हमें यह विश्वास हो चलता है क़ि इन बातों के अलावा और सब कुछ बिलकुल ठीक है , और हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है .
अब रही बात दोषों की सो अब समीक्षा करने की बारी अपनी है , क्योंकि जैसे दोस्तों की आदत विद्यमान छोटे-छोटे गुणों को बड़ाचडाकर कहने की होती है उसी प्रकार निंदक भी हमारे विद्यमान छोटे से छोटे अवगुण को बड़ाचडाकर बतलाने में रुचिवंत होते हें इसलिए यह देखने की जिम्मेदारी हमारी है क़ि उनके आकलन में सच्ची का अंश कितना है .
अपने अवगुणों को पहिचानना ही सबसे कठिन काम है एक ब़ार उनकी ओर के अपना ध्यान जाने के बाद उन्हें दूर करना उतना मुश्किल काम नहीं ,बस थोड़ी सी इक्षाशक्ति चाहिए , भला कौन होगा जो ऐसा नहीं करना चाहेगा ?
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