Monday, July 16, 2012

अरे भोले ! तू व्यर्थ ही अपराध भावना से ग्रस्त होकर हीन भावना लिए घूमता है . अरे ! जो तू कर रहा है , करने योग्य तो वही है . फर्क सिर्फ इतना है क़ि तू राग - द्वेष से ग्रस्त होकर करता है , पर करना चाहिए तटस्थ होकर . राग-द्वेष पूर्वक जो पाप है , तटस्थता पूर्वक वही धर्म है . नहीं समझा ?

अरे भोले !
तू व्यर्थ ही अपराध भावना से ग्रस्त होकर हीन भावना लिए घूमता है .
अरे ! जो तू कर रहा है , करने योग्य तो वही है .
फर्क सिर्फ इतना है क़ि तू राग - द्वेष से ग्रस्त होकर करता है , पर करना चाहिए तटस्थ होकर .
राग-द्वेष पूर्वक जो पाप है , तटस्थता पूर्वक वही धर्म है .
नहीं समझा ?


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