अरे भोले !
तू व्यर्थ ही अपराध भावना से ग्रस्त होकर हीन भावना लिए घूमता है .
अरे ! जो तू कर रहा है , करने योग्य तो वही है .
फर्क सिर्फ इतना है क़ि तू राग - द्वेष से ग्रस्त होकर करता है , पर करना चाहिए तटस्थ होकर .
राग-द्वेष पूर्वक जो पाप है , तटस्थता पूर्वक वही धर्म है .
नहीं समझा ?
pls click on link bellow ( blue letters ) to read full -
http://www.facebook.com/pages/Parmatmprakash-Bharill/273760269317272
तू व्यर्थ ही अपराध भावना से ग्रस्त होकर हीन भावना लिए घूमता है .
अरे ! जो तू कर रहा है , करने योग्य तो वही है .
फर्क सिर्फ इतना है क़ि तू राग - द्वेष से ग्रस्त होकर करता है , पर करना चाहिए तटस्थ होकर .
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