Monday, July 23, 2012

कहीं मेरा अविवेक मुझे कुछ करने न देता था और कभी मेरा विवेक ही मुझे रोक लेता था । -----------------कहने को तो जीवन भी मेरा है और पेट भी ,पर सचमुच कुछ भी तो मेरे हाथ में नहीं है , सबकी शर्तें हें , सबकी मर्यादाएं हें "-

स्वरचित एक कहानी का एक अंश -
"मैं सो जाना चाहता था पर सो नहीं पा रहा था , तब मैं उठ बैठना चाहता था पर मैं उठ भी तो नहीं पा रहा था .
कहीं मेरा अविवेक मुझे कुछ करने न देता था और कभी मेरा विवेक ही मुझे रोक लेता था । ------------------
बड़ा ही विचित्र है यह जीवन ; यहाँ खालीपन भी नींद उड़ा देता है और व्यस्तता भी .
न तो खाली पेट हमें सोने देता है और न ही बहुत भरा पेट .
कहने को तो जीवन भी मेरा है और पेट भी ,पर सचमुच कुछ भी तो मेरे हाथ में नहीं है , सबकी शर्तें हें , सबकी मर्यादाएं हें "

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