हम अपने अपराध दूसरों के सर डालने के आदी हें पर यह सही और उचित नहीं है -
-----यदि तू त्रुटिहीन उचित आचरण करना ही चाहता है तो परवशता त्याग दे , तेरी विवशता ख़त्म हो जायेगी , विवशता की अनन्त श्रंखला से तेरा सम्बन्ध टूट जाएगा , तू स्वतंत्र हो जाएगा और तेरा आचरण सम्यक हो जाएगा .-----
pls click on link bellow ( blue letters ) to read full poem -
http://www.facebook.com/pages/Parmatmprakash-Bharill/273760269317272
-----यदि तू त्रुटिहीन उचित आचरण करना ही चाहता है तो परवशता त्याग दे , तेरी विवशता ख़त्म हो जायेगी , विवशता की अनन्त श्रंखला से तेरा सम्बन्ध टूट जाएगा , तू स्वतंत्र हो जाएगा और तेरा आचरण सम्यक हो जाएगा .-----
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