यह कडबा नहीं , यह सच है .
यूं तुझे इस दुनिया में कितने ही अपने और सगे संबंधी दिखें पर ये सब सिर्फ इस जीवन के लिए ही तेरे इर्दगिर्द इकट्ठे हुए हें और इसी जीवन में एक एक कर बिखर भी जायेंगे .
इस मिलने और बिछुड़ने पर न तो उनका कोई कंट्रोल है और न ही तेरा .
तू स्वयं अनादि से है और अनंतकाल तक रहेगा और अपना कर्ता और भोक्ता तू स्वयं ही है .
न तो तू किसी के काम आ सकता है और न ही कोई तेरे .
हम एक दूसरे के विकल्पों में उलझे रहें और एक दूसरे पर मरते रहें तो बस मरना ही पडेगा .
यदि हम और वे सब अपनी अपनी संभाल करें तो दोनों का ही कल्याण होगा .
संभाल से मेरा तात्पर्य और कुछ भी नहीं बस "आत्मा को जानना , पहिचानना और उसी में लीन हो जाना .
यदि ऐसा हो सका तो सबका कल्याण होगा
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