Tuesday, July 17, 2012

अरे ! ज़रा भगवत्ता की कल्पना तो कर , अपनी कल्पना में भगवान की प्रतिमा तो बना ! क्या हमारा भगवान भी हम जैसा ही होगा , अदना , कमजोर , कमजोरियों का पुँज , मजबूर और बेवश ? हमें भगवान के बारे में अपनी धारणा पर पुनर्विचार करना होगा , हमें अपनी धारणा बदलनी होगी , उसे सही करना होगा . क्या भगवान ऐसे ही होंगे जैसे हम उन्हें मानते हें , जैसी हमने उनके बारे में कल्पना की है ? अरे दरिद्री ! ( हाँ हम कल्पना करने में भी दरिद्री हें ) तूने भगवान को भी अपनी इसी छोटी सी तराजू पर ही तोल लिया ? कंजूस की खीर आखिर कितनी मीठी हो सकती है ?




अरे ! ज़रा भगवत्ता की कल्पना तो कर , अपनी कल्पना में भगवान की प्रतिमा तो बना !
क्या हमारा भगवान भी हम जैसा ही होगा , अदना , कमजोर , कमजोरियों का पुँज , मजबूर और बेवश ?
हमें भगवान के बारे में अपनी धारणा पर पुनर्विचार करना होगा , हमें अपनी धारणा बदलनी होगी , उसे सही करना होगा .
क्या भगवान ऐसे ही होंगे जैसे हम उन्हें मानते हें , जैसी हमने उनके बारे में कल्पना की है ?
अरे दरिद्री ! ( हाँ हम कल्पना करने में भी दरिद्री हें ) तूने भगवान को भी अपनी इसी छोटी सी तराजू पर ही तोल लिया ?
कंजूस की खीर आखिर कितनी मीठी हो सकती है ?

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