Tuesday, July 17, 2012

स्वार्थ को तू हीन वृत्ति मान बैठा है , स्वार्थ तो धर्म का मार्ग है . स्वार्थी तो सन्यासी होता है , अपराधी नहीं . तेरे स्वार्थ से किसी का कोई अहित नहीं होता है , यदि तेरे स्वार्थ में द्वेष बुद्धी नहीं है .------ -----------------------------वस्तु स्वरूप में सबके ही हित सुरक्षित हें , किसी के हितों का किसी अन्य से कोई टकराव नहीं है . वस्तु के इस स्वरूप की नासमझी ही तेरी समस्या की जड़ है . तू अपनी समझ सुधार ले , तेरा कल्याण होगा .

स्वार्थ को तू हीन वृत्ति मान बैठा है , स्वार्थ तो धर्म का मार्ग है .
स्वार्थी तो सन्यासी होता है , अपराधी नहीं .
तेरे स्वार्थ से किसी का कोई अहित नहीं होता है , यदि तेरे स्वार्थ में द्वेष बुद्धी नहीं है .
क्योंकि तेरा हित तेरे अन्दर ही निहित है , उसके लिए बाहर से कुछ भी नहीं चाहिए , उससे किसी के हितों को कोई चोट नहीं पहुँचती है .
यदि तू किसी के हितों को चोट पहुंचाकर अपना हित करना चाहता है तो यह तेरा भ्रम है .
तू अकेला है और पर पदार्थ हें अनन्त .
तू अकेला यदि इन अनन्त पद्दर्थों से पंगा लेगा तो तेरा क्या होगा ?
वही ; जो अनादिकाल से होता आया है .
वस्तु स्वरूप में सबके ही हित सुरक्षित हें , किसी के हितों का किसी अन्य से कोई टकराव नहीं है .
वस्तु के इस स्वरूप की नासमझी ही तेरी समस्या की जड़ है .
तू अपनी समझ सुधार ले , तेरा कल्याण होगा .

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