जब हम किसी महापुरुष (तथाकथित) के मुख से किसी वस्तु का विज्ञापन सुनते और देखते हें तब क्या हम यह नहीं जानते हें क़ि ये जो सज्जन आपको आपके हित की बात ( तथाकथित ) बतला रहे हें , वे दरअसल बिके हुए हें .
क्या हम नहीं जानते हें क़ि बे जो भी बोल रहे हें बे उनके खुदके विचार नहीं हें , ऐसा बोलने के लिए उन्हें किसी ने करोड़ों रूपये दिए हें और बे करोड़ों रूपये आपसे ही बसूले भी जाने हें , जब आप वह प्रोडक्ट खरीदेंगे जिसका वह विज्ञापन कर रहे हें तब आप प्रोडक्ट की असली कीमत के लिए कम और उनके विज्ञापन के लिए ज्यादा पैसे देंगे .
तब भी हम उनकी बिकी हुई बातों पर भरोसा कर लेते हें , ( यदि नहीं किया होता तो ये विज्ञापन का गोरखधंधा कबका ही बंद हो गया होता न ) कैसे हें हम लोग ?
कितने बुद्धीमान (यानि महामूर्ख) हें हम लोग .
जब एक महंगा अभिनेता (या अभिनेत्री) किसी सस्ते ( यानि घटिया स्तर के ) से साबुन का विज्ञापन करते हें तब क्या आप यह मान सकते हें क़ि अपने दैनिक जीवन में भी वे उसी साबुन का इस्तेमाल करते होंगे ?
तब आप क्यों ऐसा करने के लिए तैयार हो जाते हें ?
इसे अपनी ही बुद्धी का दिवालियापन नहीं तो और क्या कहा जाए ?
कैसे हें हम लोग ?
कैसा है हमारा चरित्र ?
क्या है हमारी रीति-नीति (जीवन की ) .
क्या हम बस बुद्धू बनने और लुटने के लिए ही प्रस्तुत नहीं हें ?
अब ऐसों का मैं भी क्या भला कर लूंगा ?
अब भी मेरी कौन पढने , सुनने , समझने और मानने के लिए तैयार है ?
आपने तो पढ़ लिया है न ?
आप मुझसे सहमत हें ?
तो फिर अब आप कलसे क्या करने वाले हें ?
क्या आपकी नीति में कोई परिवर्तन हुआ है ?
यदि नहीं ; तो फिर क्या फायदा ?
बस हमारे जीवन के हर पहलू के साथ यह़ी होता आ रहा है , हम बस बुद्धू बनते जा रहे हें , जान बूझकर ( या हम जानना - समझना नहीं चाहते ) .
तो क्या यह जीवन ऐसे ही जीना है ?
भगवान आपका भला करे .
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