Friday, August 17, 2012

Parmatm Prakash Bharill: मैं इसे जीवन का अंतिम दिन कैसे कह सकता हूँ ? सचमुच...

मुझे जीवन का इतना भरोसा था ही कब : जितना मैं मौत के प्रति आश्वस्त था .
Parmatm Prakash Bharill: मैं इसे जीवन का अंतिम दिन कैसे कह सकता हूँ ? सचमुच...: तो लो ! आखिर जीवन का यह अंतिम दिन आ ही गया . जिससे मैं जीवन भर डरता रहा . जीवन भर बचता रहा . मैंने जीने के लिए कम और मौत से बचने के लिए ज्य...

No comments:

Post a Comment