सब धर्मों के एक या अनेक सर्वशक्तिमान भगवान हें पर क्या वे भी सभी को अपना भक्त , अनुयायी और आज्ञा पालक बना पाए ?सभी धर्मों के अपने-अपने काफिर हें , नास्तिक हें .
जब भगवान न कर पाए तो तू कौन है ?
Parmatm Prakash Bharill: ---------------कुछ लोग दुनिया को देख लेने के फेर म...: भैया ! यदि सही मायनों में यह जीवन जीना है तो जीवन जीने की कला तो सीखनी ही पड़ेगी . तुझे तो सारी की सारी सावधानियां बरतनी ही होंगी क़ि कहीं...
मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
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