यदि समाज सेवा करूंगा तो यह दिन देखना पडेगा न ?
नहीं करूँ तो न कोई मुझसे कोई सवाल कर सकता है और न मैं किसी को जबाब देने को बाध्य हूँ .
तब मैं क्यों समाज सेवा करूँ ? ( इसीलिये शिवाय उपदेश देने के कुछ करता भी नहीं हूँ ) .---------------------
भ्रष्टाचार से मैं नफरत करता हूँ , उससे परेशान भी रहता हूँ , उसका उन्मूलन भी चाहता हूँ और कोई इसके लिए लड़ रहा है यह देख-सुनकर अच्छा भी लगता है .
पर भैया अरविन्दजी ! आपको नहीं लगता कि कहीं भूल हो रही है ?
राजनीति का भ्रष्टाचार सामने आया , राजनीतिज्ञों की दुर्दशा देखी , गेहूं के साथ घुन को भी पिसते देखा तो मैंने फैसला कर लिया कि न तो कभी राजनीति मैं आउंगा और न ही किसी भले आदमी को इसके लिए प्रेरित करूंगा .
अब कभी कोई भला आदमी राजनीति में नहीं आयेगा , तब बताओ कि देश किन के हाथों में जाएगा , इसे कौन चलाएगा ?
रेल से रेल टकरा गई और रेल मंत्री शास्त्रीजी ने स्तीफा दे दिया , अच्छा किया , उन्हें नमन , वे अपनी जगह सही थे उनके द्रष्टिकोण से , किसी अपेक्षा से मैं उनके चिंतन की विस्तृत व्याख्या भी कर सकता हूँ और उसे सही भी साबित कर सकता हूँ . और मैं उसी विचार का आदमी हूँ , वही सही चितन है वही सही दिशा है , हर व्यक्ति को उसी तरह से सोचना चाहिए .
अब ज़रा दुसरे द्रष्टिकोण से विचार करें -
- देश में कितनी ट्रेनें रोज दौडती हें ?
- जो आदमी ट्रेन चलाता है वह अत्यंत सामान्य किस्म का इंसान है , कमियों , कमजोरियों , भूलों का घन पिंड ; को कदम -कदम पर गलतियां करता है .
- हमारे पास शास्त्री कितने हें ?
- शास्त्रीजी को लगा कि उनने समझौता करके भूल की है और उन्होंने जीवन से ही स्तीफा दे दिया .
मान लीजिये उन्होंने भूल ही कर दी थी , तब भी क्या हम इतनी बड़ी भूल की कीमत पर भी शास्त्रीजी जी को खोना अफोर्ड कर सकते हें ? कहाँ से लायेंगे दूसरा शास्त्री ? क्या ला पाए अब तक ४५ सालों में भी .
हम एक - एक भूल पर एक -एक शास्त्री को खोते जायेंगे तब बचेगा कौन रेल चलाने के लिए , देश चलाने के लिए ?
वही ड्राइवर बचेगा अंत में जो कदम -कदम पर गलतियां करता है ?
अब शास्त्रीजी तो रेल चलाएंगे नहीं , और ड्राइवर गल्ती करता है , तो क्या रेलें ही न चलेंगी ? उन्हें ही बंद कर दिया जाये ?
- भैया अरविन्द ! अब राजनीति के बाद तुमने समाज सेवा पर चोट करदी है , अब मुझे लगने लगा है कि कभी समाज सेवा नहीं करूंगा और न ही किसी भले और संवेदनशील आदमी को इसके लिए प्रेरित करूंगा ; क्यों ?
क्योंकि अब मैं खुद तो एक - एक आदमी को अपने हाथ से सुनने की मशीन बांटने को बैठूंगा नहीं न ? अब मैंने जिसको ( जिन लोगों के समूह को ) यह काम सोंपा उन्हें सीधे भगवान् ने अपने हाथों से बनाकर तो भेजा नहीं होगा , अरे पूरे तंत्र में भूल तो किसी भी स्तर पर हो सकती है , बांटने में भी हो सकती है और खरीदने में भी हो सकती है .
फिर वो स्टेटमेंट देने वाला , वो पत्रकार और वो टीवी चेनल भी तो ढूध के धुले नहीं हें , सभी तो बिकाऊ हें , सभी बिक सकते हें , मेरे जैसा कमजोर सा निरीह प्राणी व्यर्थ वली का बकरा बन जाए ?
वो खुर्शीद जी तो मजबूत आदमी हें सो चल गया , यदि मेरे साथ ऐसा हो जाए तो मेरे जैसों को तो जीवन से ही स्तीफा देना पड़े .
यदि समाज सेवा करूंगा तो यह दिन देखना पडेगा न ?
नहीं करूँ तो न कोई मुझसे कोई सवाल कर सकता है और न मैं किसी को जबाब देने को बाध्य हूँ .
तब मैं क्यों समाज सेवा करूँ ? ( इसीलिये शिवाय उपदेश देने के कुछ करता भी नहीं हूँ ) .
अरविन्द ! अगर ऐसी परम्परा की शुरुवात कर दोगे तो एक दिन तुम भी नहीं बच पाओगे , लोग तुम्हारे पिए हुए पानी पर भी सबाल उठाएंगे तब क्या करोगे ?
जो तुमने खींच दी है वही लक्ष्मण रेखा नहीं है कि कोई इससे आगे नहीं बढेगा ,
लक्ष्मन जैसे की खींची रेखा का भी किसी और ने नहीं , सीता जैसी ने उलंघन कर दिया था .
कोई कह सकता है कि अरविन्द भ्रष्ट है क्योंकि जनता के पैसे से पानी पीता है , या जब सारे देश वासियों को पीने के लिए पानी ( या साफ़ पानी ) उपलब्ध नहीं है तब एक देश सेवक को पानी पीने का ( या विसलेरी का ) क्या हक़ है ?
तब क्या करोगे ?
इस तरह तो अच्छे लोगों का समाज सेवा में लगना भी दूभर हो जाएगा .
अरविन्द ! इस बात का भी ख्याल रखो कि तुम्हारे एक कदम का क्या दूरगामी परिणाम होगा ?
तुम्हारे शुद्धी अभियान के लिए और तुम्हारे स्वस्थ्य और लम्बे जीवन के लिए शुभकामनाएं .
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