Friday, November 30, 2012

यदि आप किसी की मदद करते हें तो यह स्वयं आपके सुकून के लिए है , किसी पर आपका अहसान नहीं . व्यर्थ ही देवता बन्ने का भ्रम न पालें !


यदि आप किसी की मदद करते हें तो यह स्वयं आपके सुकून के लिए है , किसी पर आपका अहसान नहीं . व्यर्थ ही देवता बन्ने का भ्रम न पालें !

आप किसी के लिए कुछ अच्छा (भला) क्यों करते हें ?
क्योंकि इससे आपको सुकून मिलता है .
जब आपने अपने सुकून के लिए कोइ काम किया तब किसी पर अहसान किस बात का ? यह तो स्वयं अपने हित के लिए किया गया काम हुआ न ? 
तब तू क्यों व्यर्थ ही किसी को अपने अहसानों के बोझ तले दबाना चाहता है ?
हो सकता है किसी की आप जो भी मदद कर रहे हें उसकी उसे आवश्यकता ही न हो या उसे आपसे इसकी अपेक्षा ही न हो .
अब यह तो उसके ऊपर आपकी ज्यादती ही हुई न कि उसे आपसे जिस मदद की आवश्यकता ही न थी आपने उसकी वह मदद करदी और उसे फिजूल ही अपना कर्जदार बना लिया .
अरे भाई ! यदि अब आप उससे अपने किये ( कथित अहसान , मदद ) का प्रतिफल चाहते हें ( भले ही मात्र अहसान जताने का ही सही ) तो यह उसे कर्जदार बनाने जैसा ही तो हुआ !
यदि आपके द्वारा ( कथित तौर से ) उपकृत लोग आपका अहसान नहीं मानते हें तो उन्हें कृतघ्न कहना आपकी उनके प्रति ज्यादती है , अन्याय है , उनपर अत्याचार है , आक्रमण है .
इसलिए हमें चाहिए कि हम व्यर्थ ही महंत बनने का प्रयास न करें .

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