जगत के स्थापित व्यवहार , जगत के पैमाने आधे-अधूरे हें . वे हमारे जीवन के पैमाने बनने के योग्य नहीं हें ; क्यों ?
क्योंकि यह वे पैमाने हें जो आधे अधूरे लोगों ने स्थापित किये हें .
जिन लोगों ने मानवोचित गरिमापूर्ण जीवन जिया है और तदनुरूप पैमाने स्थापित किये हें उन्हें तो हमने भगवान् बना दिया है , हम उनकी पूजा तो करते हें पर उन्हें अनुशरण के योग्य नहीं मानते ; या यूं कहिये कि हम अपने आप को इस योग्य नहीं मानते की हम उनका अनुशरण कर सकें .
किसी को ( सामान्य मानव को ) भगवान् बना देने में मुझे कोई और एतराज नहीं है , मुझे एतराज इसलिए है की इस तरह हम उसे अपनी सीमा से बाहर कर देते हें , हम उन जैसा बनने या व्यवहार करने की होड़ में नहीं रहते हें , तब हम कहते हें की नहीं हम ऐसा नहीं कर सकते हें , हम कोई भगवान् नहीं हें हम तो सामान्य मानव हें .
किसी एक विशिष्ट उपलब्धी को देखकर किसी सामान्य मानव को भगवान् बना देने का एक और नुक्सान यह है कि तब उसके उसके व्यक्तित्व के अंतहीन अनेकों दोष , उसके व्यवहार की अनेकों कमियाँ और उनकी अनेकों कमजोरियां भी अविवेकी लोगों की आदर्श बन जाती हें .
एक असाधारण राजनेता , जननेता या डाक्टर को उसके फील्ड में उसकी अतिशयोक्तिपूर्ण उपलब्धी और योग्यता के लिए भगवान् का दर्जा देने का नुक्सान यह है की तब लोग उसकी कमजोरियों को भी आदर्श मानकर उनका अनुशरण करने लगेंगे . ऐसे लोग अपने काम में दक्ष होने के बाबजूद व्यसनी हो सकते हें , विलासी हो सकते हें , लोभी और दम्भी हो सकते हें , झःओण्ण्टःए , मक्कार और बेईमान हो सकते हें , क्रूर हो सकते हें , डरपोक और कायर हो सकते हें कृतघ्न और धोखेबाज हो सकते हें , तो क्या उन्हें भगवान् मानने से उनके ये सब दुर्गुण अनुकरणीय नहीं बन जायेंगे ?
बेहतर है कि हम किसी व्यक्ति को महान नाम न देकर उसके किसी गुण को या कृत्य को महान नाम दें जो अनुकरणीय हो और हम उस व्यक्ति को उसकी कमजोरियों के साथ अनदेखा करदें .
हम मनुष्य बनकर जन्मे हें इसमें हमारी कोई विशेषता नहीं है , हम मनुष्य के रूप में जन्मे और कोई पशु के रूप में , कोई शेर बनकर जन्मा , कोई गधा या उल्लू बनकर किसी में कोई फर्क नहीं है , जन्म की अपेक्षा तो सभी एक जैसे हें . जन्म के बाद हम जिए कैसे उसमें अपना कृत्य निहित है , उससे निर्धारित होगा की हम कौन हें , क्या हें .
हम शेर के रूप में जन्मे गीदड़ हें या उल्लू के रूप में जन्मे जहीन ( बुद्धीमान ) .
हमें यदि सचमुच मानवोचित गरिमा युक्त जीवन जीना है तो अपनी द्रष्टि को बदलना होगा , अपने अगल-बगल के लोगों का अनुशरण करने की स्वाभाविक वृत्ति को छोड़ना होगा , हमें मार्ग चुनना नहीं बनाना होगा .
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