मानव का बड़ापन या छोटापन उसके स्वभाव , रीति-नीति , चरित्र , भावनाओं और क्रियाकलापों से होता है , उसके वर्तमान संयोगों के आधार पर नहीं .
वर्तमान संयोग तो उसके पूर्व बद्ध कर्मोदय के फलस्वरूप अच्छे या बुरे , उच्च या हीन , अनुकूल या प्रतिकूल कुछ भी हो सकते हें .
संयोगों के आधार पर किसी व्यक्ति का वर्गीकरण करना योग्य नहीं है क्योंकि वह सही नहीं हो सकता है .
एक उदाहरण पर नजर डालें -
कोई महान संत हों तो उनके पास न तो तन पर वस्त्र दिखाई देंगे और न रहने को घर या खाने को तिनका , उनके पास न तो परिजन होंगे और न ही कोई मनोरजन का साधन . हो न हो काया भी क्षीण ही हो , तो क्या वे एक तुच्छ या छुद्र व्यक्ति हें ? नहीं न ?
इसके विपरीत कोई व्यसनी , अत्याचारी या अनाचारी , हीन वृत्ति का धारक ,दुश्चरित्र व्यक्ति सर्व साधन सम्पन्न हो तो क्या वह महान हो जाएगा ?
हम देखते हें कि संत लोग अनुकूल संयोगों के अभाव में भी जगत पूज्य होते हें और साधन सम्पन्न व्यक्ति सद्गुणों के अभाव में धिक्कार का पात्र होता है .
उक्त उदाहरण तो अति की स्थिति वाले हें पर कोई किसी भी अवस्था में क्यों न हो उसका मूल्याँकन उसके गुणों के आधार पर होना चाहिए , संयोगों के आधार पर नहीं .
No comments:
Post a Comment