Thursday, March 14, 2013

दुनिया में अधिकतम अत्याचार और दुर्व्यवहार किसी न किसी को सबक सिखाने के नाम पर किये जाते हें . ऐसा करके हम अपने दुष्कृत्य को ढांकने का प्रयास करते हें

दुनिया में अधिकतम अत्याचार और दुर्व्यवहार किसी न किसी को सबक सिखाने के नाम पर किये जाते हें . ऐसा करके हम अपने दुष्कृत्य को ढांकने का प्रयास करते हें और उसे एक बेहतर नाम देने की कोशिश करते हें और इस तरह परिवार , समाज और देश में दुर्व्यवहारों की एक परम्परा चलती रहती है .
यह बंद होनी चाहिए .
इसके लिए जरूरत है सही दिशा में , सही तरीके से सोचने की .
तुम्हारा यह सोचना गलत है कि मैं उसके बारे में चिंतित हूँ , उसके बारे में मेरी चिंता अलग बिषय है .

यहाँ तो मेरी चिंता का कारण तुम हो , सिर्फ तुम !
उसके साथ दुर्व्यवहार करके तुम दुर्व्यवहार कर्ता बन रहे हो , तुम दुर्जन की श्रेणी में शामिल हो रहे हो , तुम्हारा अविवेक(--पूर्ण कृत्य ) सामने आरहा है , अविवेक और दुर्जनता की एक परम्परा प्रारम्भ हो रही है , यह मेरी चिंता का बिषय है .
न तो समाज ने , न क़ानून ने , न धर्म ने , किसी ने भी आपके प्रति किये गए अपराध की सजा देने का न तो अधिकार आपको दिया है और न ही इसे आपका कर्तव्य माना गया है .
इसे तो उल्टे अपराध की श्रेणी में रखा गया है .
यदि आप किसी अपराधी को दंड देने के नाम पर उससे दुर्व्यवहार (मार-पीट, बध-बंधन आदि) करते हें तो आप आपराधी माने जायेंगे , आपको दंड मिलेगा .

अपने मन को ज़रा टटोलो ! कहीं तुम्हें इसमें आनंद तो नहीं आने लगा है ?
यदि तुम्हें खेद नहीं होता और संतुष्टी मिलती है तो यह तुम्हारे अन्दर छुपी हुई क्रूरता है जो तुमसे यह कृत्य करबा रही है
अपराधी को दंड देकर जज खुश नहीं होता है , वह तो खेद्खिन्न होता है .
यदि वह अपने कृत्य को महान मानता तो आदेश लिखने के बाद कलम तोड़ क्यों देता ?
यूं भी अपराधी को न्यायालय से मिले दंड के फलस्वरूप म्रत्युदंड देने वाला व्यक्ति कहलाता तो जल्लाद ही है न , वह कोई सम्मानजनक नाम नहीं पाता है .
तब जल्लाद का काम जल्लाद को करने दें न ? आप क्यों ऐसा करना चाहते हें ?
फिर भी यदि आप ऐसा करते ही हें तो आप जानते हें आप क्या कहलायेंगे ?
या तो जल्लाद या हत्यारे .
क्या आपको यह मंजूर है ?
यदि नहीं तो अपने व्यवहारों पर पुनर्विचार करें .

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