तात्कालिक इन्द्रियों के बिषय भोग और तद्जनित छद्म सुखाभास निरंतर हमें लुभाते रहते हें , बांधे रहते हें और त्रैकालिक आत्मिक सुख के बारे में सोचने का अवसर ही नहीं आता है .
आध्यात्म की चर्चा दुर्लभ है , इसके रसिक थोड़े हें और ज्ञानी जीव तो दुर्लभ ही हें .
ज्ञानी जीव चलकर हमारे पास आयें और आत्मा की चर्चा करें यह तो कैसे सम्भव है , अपने हित के लिए तो हमें स्वयं को ही जाग्रत रहना होगा , उद्ध्यम भी करना होगा .
इस बिषय में गलती न करना !
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