जब हम कोई महान लक्ष्य लेकर निकले हों तब मार्ग में आने बाली अन्य (छोटी-बड़ी) बातों में नहीं उलझना चाहिए , बस हमारी द्रष्टि हर पल मात्र अपने लक्ष्य पर ही होनी चाहिए . हमारा वही लक्ष्य हमारा एक मात्र " साध्य " होना चाहिए .
अपने साध्य की सिद्धी में सहायक हर क्रियाकलाप हमारी गतिविधि में शामिल होना चाहिए और ऐसे किसी भी व्यक्ति या घटना या परिस्थिति के साथ हमें उलझने से बचना चाहिए जो हमें हमारे लक्ष्य से दूर करे या हमें अपना लक्ष्य पाने में देरी करे .
मार्ग में आने वाली किसी भी स्थिति से निपटने के लिए कोई भी कीमत अधिक नहीं है , सर्वस्व समर्पण भी .
अपने साध्य की सिद्धी में संलग्न व्यक्ति "साधक " कहलाता ( होता ) है .
साधक का बस एक ही कर्तव्य होता है , एक मात्र ; " साध्य "
बस ! और कुछ भी नहीं !
अपने साध्य की सिद्धी के लिए उक्त विधि से जुट जाने का नाम ही "साधना " है
साध्य , साधक और साधना का यही सुमेल , साधक की , साध्य के लिए साधना की सफलता की पहिली शर्त है , यही उसकी विधि है और यही उसकी सफलता की गारंटी भी .
इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं .
बस ! एक मात्र सम्पूर्ण समर्पण .
continued (it is a long artical)
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