तुमतो समझ ही ना सकोगे , क्या मिलेगा चाँद पर
(कविता )
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
एक व्यक्ति कुछ नया करने का निर्णय लेता है तो कुछ सोच-समझ कर लेता है .
(कविता )
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
एक व्यक्ति कुछ नया करने का निर्णय लेता है तो कुछ सोच-समझ कर लेता है .
अरे ! कुछ क्या , बहुत कुछ सोचकर छोटा सा निर्णय लेता है .
किसी ने कुछ नया सोचा नहीं कि बस सारी दुनिया उस पर पिल पड़ती है -
" ये क्या कर रहे ? , ऐसा हो जाएगा - बैसा हो जाएगा , यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा - यदि ऐसा नहीं हुआ तो क्या होगा , आज तक तो ऐसा किसी ने नहीं किया "
अरे ! किसी ने नहीं किया तो कौनसे तारे तोड़ लिए हें ?
जो सबने किया है वह करके अब हम क्या करेंगे , अरे ! किसी को तो कुछ नया करने दो , नहीं तो कुछ नया होगा कैसे ?
कोई तो कुछ नया करेगा न ? कोई न कोई तो करेगा /
तब मैं ही क्यों नहीं ?
निम्नांकित पदों में मैंने " चाँद " को एक अबूझ पहेली के रूप में प्रस्तुत करते हुए एक प्रतीक के रूप में चुना है , मैं चाँद पर जाने के लिए तैयार हूँ और सारा ज़माना मुझे मेरे इस निर्णय के विरुद्ध सलाह दे रहा है , लीजिये सुनिए उन्हें दी गई मेरी दलीलें -
यूं चाँद तो बंजर पड़ा है,ऐसा क्या धरा है चाँद पर
तो भी क्यों दौलत लुटाके , बो जा रहे हें चाँद पर
तुमतो समझ ही ना सकोगे , क्या मिलेगा चाँद पर
जो ढूंढता तूँ , क्या वही पाने , ये लोग जाते चाँद पर
हर कोई यदि ये समझ पाता , क्यों लोग जाते चाँद पर
अब तक कहाँ महफूज रहते ,तुम चले न जाते चाँद पर
यह तो बस मैं जानता हूँ, मुझको क्या मिलेगा चाँद पर
तुम न पूंछो, न बताओ , किसको क्या मिलेगा चाँद पर
अब न रोको , जाने दो यारों , मैं तो चला अब चाँद पर
वहीं जाकर पता लगेगा , क्या बिखरा पडा है चाँद पर
ना चाँद वाले जान पाए, क्या कितना सुलभ है चाँद पर
हमको यहाँ से नजर आये, क्या बिखरा पडा है चाँद पर
अब मैं चलूँगा , ना रुकूंगा , अब मैं रहूँगा चाँद पर
हालात ही देंगे गबाही,मुझको क्या मिला इस चाँद पर
चाहो तो तुम भी चले आओ, मेरे साथ रहना चाँद पर
समझ जाओगे,बताओगे, तुमको क्या मिलाहै चाँद पर
No comments:
Post a Comment