Wednesday, August 14, 2013

मंजिलों को सोपानों में तोड़ दो , चड़ना आसान हो जाएगा

मंजिलों को सोपानों में तोड़ दो , चड़ना आसान हो जाएगा 
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

जिस पल आप अगली सीडी पर कदम रखते हें उस पल आपकी मंजिल वही अगली सीडी ही है , पल भर के लिए ही सही। 
उस पर आरोहण करते ही अगले ही पल आपकी मंजिल उससे अगली सीड़ी हो जाती है , उसके बाद उससे अगली , उससे अगली और इस तरह आप अपनी अन्तिम मंजिल तक पहुँच ही जाते हें। 
इस प्रकार अपनी अन्तिम मंजिल पाने के लक्ष्य के साथ आपके और उस मन्जिल के बीच की हर सीड़ी , बीच का हर कदम , हर पडाव आपकी तत्कालीन मन्जिल , आपका तत्कालीन लक्ष्य तो बन ही जाता है। 
इस क्रम में एक पल पूर्व जो पाने योग्य था , लक्ष्य था अब पड़ाव हो गया है और अगले ही पल वह त्याज्य (हेय) हो जाएगा। 
मार्ग के वे लक्ष्य , वे पड़ाव बहुत रमणीय भी हो सकते हें और बड़े भयंकर भी। 
अगर वे रमणीय हें तो उनमें रम कर रुका नहीं जा सकता है और अगर वे भयंकर हें तो उनसे डरकर झुका नहीं जा सकता है 
वे जो भी हों वे पाकर त्यागने योग्य हें। 
उन पर चड़ना हमारे अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति में साधक है और उनपर अटकना बाधक। 

यह है सफल यात्रा की प्रक्रिया। 

मार्ग में तेरे साथ चलने वाले अधिकतम लोग तेरे सहचारी नहीं होते हें , तू उनका अनुशरण मत करना !
उनमें से अधिकतम लोग कहीं बीच में तुझसे आ मिले होंगे और कहीं बीच में ही तेरा साथ छोड़ भी देंगे। 
जो तेरा एक पल का लक्ष्य है हो न हो वही उनका अंतिम लक्ष्य हो। 
हो सकता है लक्ष्य उनका भी वही हो जो तेरा है पर संभव है वे थककर रुक जाएँ , वे कठिनाइयां आने पर अटक जाएँ या मोड़ आने पर भटक जाएँ। 
सहचारी न तो तेरे आदर्श हो सकते हें , न गुरु और न ही मार्ग दर्शक। 
कदाचित वे प्रतिस्पर्धी अवश्य हो सकते हें , उनसे अलिप्त रहना ही योग्य है। 

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