Monday, September 30, 2013

जन्म दिवस पर - 30 सितम्बर 2013 --"उपलब्धि नहीं है वक्त बिताना"

जन्म दिवस पर - 30 सितम्बर 2013 
उम्र बढ़ती है , हम बुड्ढे होते हें , कुछ और नहीं तो लोग इस झुर्रियों दार चेहरे का और सफ़ेद बालों का ही आदर करने लगते हें। 
क्या यह आदरणीय हैं ?
these people are gainer or looser ?

कविता 

-परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

उपलब्धि नहीं है वक्त बिताना 
अब संसार बिताना होगा 
अब तक तो सब किया बहिर्मुख 
अब अन्दर आना होगा 

ढलने का निश्चित क्रम लेकर ही 
सूरज उगता है 
चड़ता सा भी दिखे यदि 
पर यह प्रतिपल ढलता है 

कहने को यह जन्मदिवस है 
मुझको मौत नजर आती है 
दैदीप्यमान दीपक की बाती 
कुछ पल में ही तो बुझ जाती है 

नकारात्मक सोच नहीं यह 
यह तो जीवन का सच है 
आँख मूंदकर बैठे रहने का 
यूं तो सबको ही हक है 

शेखचिल्ली के सपनों को क्या 
सकारात्मक सोच कहोगे 
रमणीय ख़्वाबों में रच बस कर 
क्या सब कुछ यूं ही लुटबा दोगे 

जीवन में यदि सचमुच ही 
तुमको कुछ पाना है 
दौड़ भाग तो बहुत हुई 
बस अब तो थम ही जाना है 

उछला कूदा , मदमस्त रहा 
जग भर में घूमा , इठलाया 
चैन शुकून न मिला पल को 
मैंने खुद को निष्फल पाया 

थकहारकर मन मारकर जब 
संध्याकाल में निज घर आया 
उद्विग्नता तब शांत हुई 
मर्म मुझको समझ आया 

वहिर्गमन ही हार है 
अंतर्रमण ही जीत 
आत्मा ही है शरण 
शांति का संगीत 

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