Sunday, September 15, 2013

चैतन्य जो निर्मल सदा , वह ज्ञायक परम पवित्र है

चैतन्य  जो निर्मल सदा  , वह ज्ञायक परम पवित्र है 
(कविता)
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

शैवाल जल की कलुषता ज्यों,त्यों मैल आश्रव भाव है 
कलुषित करें वे आत्म को , वे  नहीं आत्म स्वभाव हें 
वे अशुचि हें , अपवित्र जड़ , निज  भाव से विपरीत हें 
चैतन्य  जो निर्मल सदा  , वह ज्ञायक परम पवित्र है 

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