चैतन्य जो निर्मल सदा , वह ज्ञायक परम पवित्र है
(कविता)
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
शैवाल जल की कलुषता ज्यों,त्यों मैल आश्रव भाव है
(कविता)
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
शैवाल जल की कलुषता ज्यों,त्यों मैल आश्रव भाव है
कलुषित करें वे आत्म को , वे नहीं आत्म स्वभाव हें
वे अशुचि हें , अपवित्र जड़ , निज भाव से विपरीत हें
चैतन्य जो निर्मल सदा , वह ज्ञायक परम पवित्र है
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