Saturday, October 12, 2013

क्या तुझे अपना कल्याण नहीं करना है ? तब फिर क्यों नहीं सारे आग्रह और बंधन तोड़कर सत्य का निर्णय करता है ?

सत्य का निर्णय -
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

दुनिया में अनेकों धर्म , मान्यताएं और कुल परम्पराएं हें , वे सभी एक दूसरे से भिन्न ही नहीं विपरीत भी हें। 
एक दूसरे के सर्वथा विपरीत होने से वे सभी तो एक साथ सच हो नहीं सकते हें , उनमें से तो कोई एक ही सच होगा .
इस प्रकार इनमें से सच कोई भी हो पर अधिकतम लोग जो सत्य के अलावा अन्य धर्म को मानते हें वे तो गलत ही हुए न ?
यदि सभी लोग अपने वंश की परम्परा को ही निभायेंगे तो आप समझ ही सकते हें क़ि दुनिया के अधिकतम लोग तो गलत ही होंगे .
हमें यह देखना है क़ि कहीं हम भी तो उन्हीं अभागों में से ही एक तो नहीं हें ?
अरे भाई ! आज तू यहाँ है कल जाने कहाँ होगा , आज इस परम्परा को सच मानेगा इसका विकास और प्रचार करेगा और मरकर कल किसी और कुल में चला जाएगा , तब क्या होगा ?
क्या तब तू उसका उपासक नहीं हो जाएगा ,उसीको सच नहीं मानने लगेगा , क्या तब उसी का प्रचार नहीं करेगा ?
तो क्या तू बस इसलिए बना है , आज इसका और कल उसका ढिंढोरा पीटने के लिए। 
जब तू आज एक बात कहता है और कल उसी के विपरीत दूसरी , तब क्या तू खुद अपने कल के किये पर पानी नहीं फेरता है ?
अब इस बात का क्या भरोसा कि आज तू जिस बात को सच बतलाता है , कल उसी बात का फिर से खंडन नहीं करेगा ?
तो क्या इसी गोरख धंधे में उलझा रहेगा ?
क्या तुझे अपना कल्याण नहीं करना है ?
तब फिर क्यों नहीं सारे आग्रह और बंधन तोड़कर सत्य का निर्णय करता है ?
अपना हित इसी में है क़ि हम स्वयं सत्य का निर्णय करें , स्वीकार करें , क्योंकि यह अपने हित की बात है .

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