जीवन के प्रतिदिन दीपावली हो (कविता )
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
प्रतिदिन इक इक दीप जले , बन जाए इक दिन दीपावलियाँ
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
प्रतिदिन इक इक दीप जले , बन जाए इक दिन दीपावलियाँ
बर्ष यदि अन्धकारमयी हो,इक दिन की व्यर्थ हें फुलझड़ियाँ
आओ प्रतिदिन - प्रतिपल ही हम , खुशहाली के दीप जलाएं
क्यों इक दिन भी अंधेरा हो , हों ना क्यों प्रतिदिन दीपावलियाँ
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