इस रचना के माध्यम से मैंने अपने और हम सबके अन्दर
झाँकने का प्रयास किया है , अपने पाप कर्मों और कुतर्कों के सहारे उन पापों के
पोषण के प्रयासों की पोल खोली है .
यह तो सिर्फ मेरी बात है , मेरे अपने लिए !
आप ऐसे थोड़े ही हें ?
बुरा मत मानना !
यह तो सत्य ही है कि यदि आज सब लोग , मेरे अपने ही
लोग मेरे प्रति घोर शत्रुता का व्यवहार कर रहे हें तो इसके लिए कोई और नहीं मेरा अपना
ही घोर पाप का उदय ही उत्तरदायी है .
यदि पाप का उदय मुझे है तो तय है कि ये पाप बांधे भी
मैंने ही होंगे , किये भी मैंने ही होंगे , पापी भी मैं ही रहा होउंगा .
पर हाय ! वस्तुस्वरूप ( प्रकृति ) का यह घोर अन्याय ,
कि मुझ पापी को मेरे अपने पापों की सजा देने के लिए इतने सज्जन , उदारमना , नैतिक
, बुद्दीमान और सकारात्मक विचारों वाले धर्मात्मा लोगों को दुर्जन के अवतार में
अवतरित होना पडा , उन्हें स्वयं मेरे प्रति दुष्टताभरा , अनुदार , अनैतिक और नकारात्मक पापभरा
कृत्य करने को मजबूर होना पडा .
मैं स्वयं तो पाप करके पापी बना ही , मैंने उन्हें भी
पापी बना डाला ?
घोर अपराध , इसकी सजा भी मुझे ही मिलनी चाहिए , क्यों
! ठीक है न ?
अब शायद उन्हें तो अपने इस पाप की सजा मिलेगी नहीं ,
मेरी भावना भी यही है कि न मिले ; क्योंकि उन्होंने अपने लिए थोड़े ही पाप कर्म
किये हें , उन्होंने तो मुझ जैसे पापी को दण्डित करने के लिए यह सब किया है न ?
उन्होंने तो ऐसा करके वस्तुस्वरूप ( प्रकृति ) का
सहयोग किया है , यदि वे ऐसा नहीं करते तो मेरे जैसा पापी दण्डित हुए बिना नहीं रह
जाता ?
उन्हें तो वस्तुस्वरूप ( प्रकृति ) द्वारा उन्हें
सोंपे गए कार्य को पूरा करने का पुरूस्कार मिलना चाहिए ?
अरे ! उन्होंने तो यह भगवान् जैसा महान काम किया है ,
क्या भगवान् लोग ऐसा काम नहीं करते हें ? क्या भगवान् लोग भी दुष्टों को दंड देने
के लिए अवतार नहीं लेते हें ?
फिर उन्होंने क्या गलत किया है ?
इसमें उनका क्या दोष ? उनका क्या पाप ?
शायद इस धरा पर पाप क्रत्यों की शुरुआत ही मुझसे ही
हुई है , अन्य और तो सिर्फ मुझ जैसे पापियों को दण्डित करने के लिए पापी बने हें ,
वे तो महान की श्रेणी में आते हें , भगवान् की श्रेणी में आते हें.
दोषी तो सिर्फ मैं हूँ , हाँ ! सिर्फ मैं .
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