Tuesday, January 13, 2015

धर्म क्या,क्यों,कैसे और किसके लिए (तीसरी क़िस्त,गतांक से आगे)

धर्म क्या,क्यों,कैसे और किसके लिए (तीसरी क़िस्त,गतांक से आगे)
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
अब तक हमने पढ़ा कि किस प्रकार दाता भगवान् और याचक भक्त के बीच एक और वर्ग अवतरित हो गया-विधिविधान सम्पन्न करबाने वाले पंडित और पुजारी का;अब आगे पढ़िए 
हमारी कल्पना का भगवान् भी हमारी ही तरह सीमित शक्ति,सीमित साधन और सीमित द्रष्टिकोण वाला एक आधा-अधूरा,रागी-द्वेषी संकीर्ण विचारधारा वाला जन्सामान्य सा व्यक्ति होता है जो  अनेकों बंदिशों और सीमाओं में रहकर काम करता है.
हम पाते हें कि भगवान् कौन हें,कैसे होते हें,क्या हें,हें भी या नहीं;हमें इस बात की सही समझ नहीं है और न ही हमें इसकी परवाह ही है.हम सभी ने तो बस अपनी-अपनी समझ से अपने-अपने भगवान् की एक काल्पनिक प्रतिमा अपने मन में बसा रखी है.
कैसे हें वे हमारी कल्पना के भगवान् ?
हमारी कल्पना के वे भगवान् नतो सर्वज्ञ हें जो कि स्वयं ही यह जान और समझ सकें कि हमें,उनके भक्तों को,उनके पुजारियों को कब और क्याचाहिए इसलिए हमें उन्हें अपनी फरमाइशों की लिस्ट थमानी पड़ती है.
हमारी कल्पना के वे भगवान् सर्वव्यापी भी नहीं हें कि जब और जहां चाहें हम उनसे सम्पर्क कर सकें,गुफ्तगू कर सकें.वे सिर्फ कहीं कहीं ही पाये जाते हेंअमूमन मंदिरों आदि उपासना स्थलों पर.उनसे संपर्क करने के लिए हमें उनके उपासना स्थलों पर जाना पड़ता है,उनके यहाँ अभी तक ऑनलाइन सर्विस की शुरुवात नहीं हुई है.
एक बात और हम उनके उपासना स्थल पर जाते भी हें पर उनके सभी उपासना स्थल भी सामान रूप से अधिकार सम्पन्न नहीं हें,हर उपासना स्थल पर तो मात्र सीमित सर्विस ही उपलब्ध है,एक ही वही भगवान् भी अपनी सभी मूर्तियों के माध्यम से भी सभी काम नहीं करते हें,और अपनी किसी विशिष्ट मनोकामना की पूर्ती हेतु हमें उनके किसी विशिष्ट उपासना स्थल पर किसी विशिष्ट प्रतिमा के सामने ही अर्जी लगानी पड़ती है मानो उन्होंने उसी प्रतिमा को अपनी सोल सेलिंग एजेंसी दे रखी हो.कभी-कभी तो वह भी मात्र किसी विशिष्ट दिन और समय पर ही,मानो कोई त्वरित उपाय शिविर (fast solution camp) लगाया गया हो.
हमारी कल्पना के वे भगवान् सर्वशक्तिमान भी नहीं हें जो बिना शर्त सब कुछ कर सकें,जो चाहें सो कर सकें,उनके साथ सौदा पट जाने औरएग्रीमेंट हो जाने के बाद भी बिना मीनमेख के वह सब कुछ,सही समय पर बैसा का बैसा नहीं मिल जाता जिसकी अभिलाषा प्रकट की गई हो.
जो कुछ भी मिलता है वह देर-सबेर,आधा-अधूरा और अनेकों शर्तों (if & buts) के साथ मिलता है.यदि एक शुकून मिलता है तो उसके साथ चार व्याधियां भी जुडी होतीं हें.यदि संतति मिलती है तो वह प्रतिकूल होती है,धन आता है तो इन्कमटेक्स बालों को साथ लेकर आता है,जीवन मिलता है तो अनेकों व्याधियां साथ लेकर मिलता है,जब चने मिलें तब दांत नहीं होते हें और जब दांत हों तो चने नहीं मिलते आदि.
हमारी कल्पना के भगवान् भी हम जैसे ही रागी-द्वेषी और पक्षपात करने वाले हें,वे पूजा करने बाले पर प्रसन्न हो जाते हें और निंदा करने बाले पर नाराज.मन्नत मांगे जाने पर वे प्रलोभन देने बाले का काम कर देते हें चाहे वह काम अनैतिक और अन्यायपूर्ण ही क्यों न हो पर अन्य लोगों की सुनबाई हो भी या न भी हो यह जरूरी नहीं.
एक बात और,हमारी कल्पना के इन भगवानों के दरबार में भाजी और खाजा सब एक भव पर मिल जाते हें,इनमें सही काम की सही कीमत के बारे में समझ का आभाव नजर आता है.
हमारी कल्पना के इन भगवानों में व्यावसायिक नैतिकता का अभाव भी द्रष्टिन्गत होता है और ये दो परस्पर विरोधी व्यक्तियों की दो परस्पर विरोधी कामनाएं पूरी करने की पेशगी स्वीकार करने में भी हिचकते नहीं हें,वे एक साथ किसान की बरसात होने की कामना और व्यापारी की बरसात न होने की कामना पूरी करने की जिम्मेदारी स्वीकार कर लेते हें.
कभी-कभी तो हमें यह अपनी कल्पना के ये भगवान् बड़े असहाय से नजर आते हें जब वे अपने न तो अपने आलोचकों को दंडित कर पाते हें औरन ही अपने भक्तों को पुरुष्कृत.गली-गली में उनके निंदक फलते-फूलते दिखाई देते हें और उनके भक्त कष्टों और अभावों भरा जीवन व्यतीत करते देखे जाते हें.
हम देखते हें कि हम भक्तों को भी अपने इन कल्पना के भागवानों पर वैसा भरोसा नहीं है जैसा साधारण से मानवों पर भी होता है,इसीलिये तो हम अपने काम करबाने के लिए मनुष्यों को तो रिश्वत पेशगी ही देदेते हें पर भगवान् से कहते हें कि फलां काम हो जाने पर यह भेट दूंगा.
हमें उनकी क्षमताओं और शक्तियों का भी भरोसा नहीं है तभी तो हम अंत में उनके पास तभी जाते हें जब कहीं और हमें हमारा काम होता नजर न आये,जब तक कहीं और से आशा बनी रहे हम भगवान् को कष्ट नहीं देते हें,जिसकी सभी डाक्टरों द्वारा जबाब देदिए जाने के बाद ही हम उपासना स्थलों की ओर रुख करते हें;ऐसे हालात में हम सिर्फ किसी एक ही भगवान् के भरोसे भी नहीं बैठ जाते हें वल्कि सभी भगवानों के दरबार में अपनी अर्जी लगा देते हें क्योंकि हमें मालूम नहीं कि कौनसा भगवान् हमारी सहयाता कर पायेगा या कोई कुछ कर भी पायेगा या नहीं . 
इस प्रकार हम पाते हें कि हमारी कल्पना का भगवान् उन सभी मानव सुलभ कमियों और दुर्गुणों से भरापूरा है जिन दुर्गुणों के धारक व्यक्ति से हम साधारण सा सम्बन्ध रखना भी पसंद नहीं करते और ऐसे किसी व्यक्ति की संगति को हम अपने जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य मानते हें.इस प्रकार हमारे और हमारी कल्पना के हमारे भगवान् के बीच का रिश्ता अत्यंत अनिश्चित सा अत्यन्त अविश्वास का,अत्यन्त क्षणिक,स्वार्थ से भरपूरऔर निष्ठा विहीन ही होता है. 
– क्रमश:

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