Friday, February 13, 2015

भगवान् के इस उक्त स्वरूप ने हमारी कल्पना में आकार क्यों और कैसे लिया ? क्यों नहीं हम भगवान् के सही स्वरूप को जान पाए, पहिचान पाए ?धर्म क्या,क्यों,कैसे और किसके लिए (पांचबीं क़िस्त,गतांक से आगे)

धर्म क्या,क्यों,कैसे और किसके लिए (पांचबीं क़िस्त,गतांक से आगे)
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल

पिछले अंक में हमने पढ़ा -  हमारी कल्पना के भगवान् इन अनेकों श्रेणियों में सबसे ऊपर एक सुपरमेन की श्रेणी में वर्गीकृत किये जा सकते हें जो भोग में भी सर्वोच्च हें और योग में भी, जो शारीरिक रूप से भी सर्वाधिक वलिष्ट हें और सर्वाधिक साधनसम्पन्न व प्रभावशाली भी; पर हमारी कल्पना के ये भगवान भी हमारी ही तरह चुनौती रहित या स्पर्धा रहित नहीं हें, इनके कर्तृत्व और सत्ता को चुनौती देने वाले और उसमें दखलंदाजी करने वाली अन्य शक्तियां भी लोक में (हमारी कल्पना में) विद्यमान हें. अब आगे पढ़िए –

आखिर ऐसा हुआ क्यों ? भगवान् के इस उक्त स्वरूप ने हमारी कल्पना में आकार क्यों और कैसे लिया ? क्यों नहीं हम भगवान् के सही स्वरूप को जान पाए, पहिचान पाए ?
इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा वर्तमान में ही निमग्न रहना.
बात अटपटी तो लगेगी, आखिर इन दो बातों के बीच सम्बन्ध ही क्या है ?
इनका सम्बन्ध बड़ा गहरा है.
वर्तमान में निमग्न होने से मेरा तात्पर्य है हमारा आज की तत्कालीन परिस्थितियों में अत्यंत व्यस्त रहना, हम सभी अपने वर्तमान की समस्यायों से त्रस्त इतने अस्त-व्यस्त रहते हें कि इनसे ऊपर उठकर सोचने का हमें अवकाश ही नहीं रहता है, विचार ही नहीं आता है, वे हमारे लिए महत्वपूर्ण ही नहीं रह जाती हें.
एक ओर हमारे शरीर में केंसर पल रहा हो और दूसरी ओर पेट में भयंकर दर्द हो तो हमें पेट के दर्द से छुटकारा चाहिए, अभी इसी वक्त, हर कीमत पर, क्योंकि यह दर्द हमें वेहाल किये हुए है, केंसर तो अभी हमें दिखता ही कहाँ है, वह तो सिर्फ डाक्टर को दिखरहा है, हमतो डाक्टर के कहने से मात्र जान पाए हें कि हमें केंसर है, केंसर की वेदना अभी हमने भोगी कहाँ है, पर नहीं यह पेट का दर्द तो मैं सह ही नहीं सकता हूँ, जो भी मेरा यह पेट का दर्द दूर कर सके वही मेरे लिए भगवान् है, वही सब कुछ है, उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ.
हमारा रबैया कुछ इस प्रकार का होता है कि देखते हें एक बार यह पेट का दर्द मिट जाए फिर केंसर के बारे में भी सोचेंगे. होता यह है कि जबतक पेट का दर्द कम होता है उससे पहिले ही दूकान में बड़ा ग्राहक आजाता है, बच्चे के स्कूल जाने का समय हो जाता है या टीवी पर हमारा पसंदीदा सीरियल आने का समय होजाता है, अब यह सब तो तुरन्त निपटाने जरूरी हें न, इन्हें तो टाला नहीं जा सकता है.  
दर्द की दवा (pain killar) तत्काल, मात्र तत्काल का काम करती है और मर्ज का इलाज हमेशा के लिए होता है, होना चाहिए; हालांकि इसमें समय लग सकता है.
हमारा द्रष्टिकोण इतना उथला है कि हमतो अपने दुःख-दर्दों को भी सही तरह से नहीं पहिचानते हें, तब हम उनका सही इलाज भी कैसे कर पायेंगे ?
हमें सर में दर्द होता है तो हम सरदर्द दूर करने के उपाय करने लगते हें, सर दबाते हें, दर्दनाशक (pain killar) दवा खाते हें, हम उस कारण का, उस रोग का विचार नहीं करते हें जिसके कारण सर दर्द हो रहा है. सरदर्द रोग नहीं, रोग का लक्षण है, रोग का फल है जोकि हमेशा के लिए तो रोग के दूर होने पर ही दूर हो सकता है. मर्ज के इलाज से दूर हो सकता है.
धर्म हमारे मर्ज का इलाज है, अनादि से चले आरहे भव भ्रमण के मर्ज का स्थायी इलाज; पर हमें इसकी चाहत ही नहीं है, दरअसल अपने वर्तमान के दुखड़ों में ही हम इतनी गहराई तक डूबे हुए हें कि हमें अपने त्रैकालिक लक्ष्य के बारे में सोचने का अवकाश ही नहीं है. बस ! हमें तो अपने वर्तमान के झंझटों से निजात चाहिये, हर कीमत पर, इसी वक्त.
धर्म का अवलंबन हमें अपने वर्तमान दर्द की दवा नहीं दिखाई देता है, हाँ ! वह हमारी कल्पना का भगवान् कदाचित (हमारी कल्पना के अनुसार) हमारे इन दुखड़ों को दूर कर सकता है इसलिए हम उस भगवान् के दरबार में तो हाजिरी लगाते हें, मत्था टेकते हें पर भगवान् के द्वारा बतलाये गए धर्म के मार्ग पर ध्यान ही नहीं देते हें.
अपने वर्तमान दुखों को दूर करने के लिए हम मात्र स्थापित भगवानों की ही शरण में नहीं जाते हें  वरन हम उन सभी को भगवान् मानने और पूजने को हमेशा तैयार रहते हें जो हमें अपने इन दुखड़ों से मुक्ति दिलाने में सहायक प्रतीत होते हों, चाहे फिर यह हमारा भ्रम ही क्यों न हो. यही कारण है कि हमारी भगवानों की लिस्ट में नित नए नाम जुड़ते जारहे हें और हम पाते हें कि इन नये भगवानों के दरबार में पुराने स्थापित भगवानों की अपेक्षा ज्यादा भीड़ जुटती है, ज्यादा मन्नतें माँगी जातीं हें और ज्यादा चडाबा आता है.
- क्रमश:

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