Monday, September 14, 2015

परमात्म नीति -(51) वे दूरद्रष्टि होते हें – उनका सोच बड़ा होता है -

कल हमने पढ़ा -
मात्र वर्तमान में ही उलझे लोगों को स्वप्न देखने आ अवकाश ही नहीं मिलता है, स्वप्नद्रष्टा बनने के लिए वर्तमान से उबरना जरूरी है .
अब आगे पढ़ें -
परमात्म नीति  -(51)


वे दूरद्रष्टि होते हें – 
उनका सोच बड़ा होता है -





महान लोगों की द्रष्टि का दायरा विशाल होता है, बस इसीलिये वे ऊपर उठ जाते हें.

आपने स्वयं अनुभव किया होगा कि जब-जब आप दूर-दूर तक देखने का प्रयास करते हें तो आपको ऊपर की ओर कूदना (jump) पढता है, कहीं ऊंचाई पर चढ़ना होता है.
द्रष्टि की विशालता ऊंचाई की समानुपाती है .
(The height is proportional to the magnitude of vision)

आपका द्रष्टि का दायरा जितना विशाल होता जाएगा, आप स्वमेव ही उतने ही ऊँचे उठते जायेंगे. 


एक बात और -

आप जितने ही ऊँचे उठते जायेंगे आपको छोटी वस्तुएं दिखनी बंद हो जायेंगी, छोटी वस्तुएं आपकी नजर में गोण हो जायेंगी, या यूं समझ लीजिये कि ऊपर उठने के लिए आपको छोटी बातों को गौण करना ही होगा.  
छोटी वस्तुएं देखने वाले उंचाई से भी नीचे उतर आते हें .
छोटी वस्तुएं देखने के लिए पक्षियों को आकाश की अनन्त ऊँचाइयों से नीचे उतरना पढता है .






सामान्यजन आजका और मात्र अपने आसपास का विचार करता है, महान लोग चारों ही चतुष्टय (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव) की अपेक्षा से दूरद्रष्टि होते हें.


- वे मात्र अपनी नहीं सोचते सबका ख्याल रखते हें.


- वे मात्र यहाँ की नहीं सोचते हें, उनका सोच सार्वभौमिक होता है, उनके सोच में क्षेत्र की मर्यादा नहीं होती है.


- वे मात्र आज का विचार नहीं करते वरन उनके विचार का बिषय अनंतकाल होता है और इसीलिये उनकी योजनायें दूरगामी हुआ करती हें.


- उनके प्रयोजन क्षुद्र नहीं होते, उनके लक्ष्य विशाल होते हें.







आगे पढ़िए - महान लोग विवेकशील व विचारवान होते हें , परमात्म नीति , कड़ी (52), 
कल -


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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 


- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 


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