Sunday, October 23, 2011

और जहां पर बिखरा अंधियारा , वहां शुभ्र दिवाली आने बाली

"परिवर्तन का कोई अंतिम दौर नहीं हो सकता है "-

ना मात्र लकीरों पर इठलाओ , प्रत्येक सुबह ये बदलीं पाओ
मानव हो मानवता दिखलाओ,इन हकीकतों को भूल न जाओ
आज जहां पर बिछी चांदनी , कल निश्चित मावस छाने वाली
और जहां पर बिखरा अंधियारा , वहां शुभ्र दिवाली आने बाली

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