मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Saturday, October 15, 2011
Parmatm Prakash Bharill: १६ साल के इकलौते बेटे ने दुनिया की अन्य कोई भी उच्...
Parmatm Prakash Bharill: १६ साल के इकलौते बेटे ने दुनिया की अन्य कोई भी उच्...: १६ साल के इकलौते बेटे ने दुनिया की अन्य कोई भी उच्च शिक्षा लेने का विकल्प छोड़कर धर्म - दर्शन की शिक्षा लेने के लिए बम्बई का अपना घर छोड़कर...
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