Thursday, December 29, 2011

Parmatm Prakash Bharill: ये पतझार और बहारें , बंदी नहीं तुम्हारी

Parmatm Prakash Bharill: ये पतझार और बहारें , बंदी नहीं तुम्हारी: तुम्हारी चाह से पत्ते पेड़ों पर ठहरते नहीं हें कोई लाख चाहे समय से पहिले गिरते नहीं हें ये पतझार और बहारें बंदी नहीं तुम्हारी मानते तु...

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