आज महावीर जयंती है .
कैसी बिडम्बना है क़ि बड़ी-बड़ी सभाओं में बड़े-बड़े नेता और विद्वान लोग महावीर को उन कामों के लिए याद करते हें जो उन्होंने किये ही नहीं .
महावीर के उन कामों की चर्चा ही नहीं होती जो उन्होंने किये , जो महावीर का प्रदेय है , सारे विश्व के लिए , समूची मानवता के लिए , अरे ! प्राणी मात्र के लिए .
उक्त सभी मुद्दों को समेटे
एक कविता
जो आपकी धारणाओं को झकझोर देगी .
चोंकियेगा नहीं !
यह महावीर की आलोचना नहीं है ,ये तो बे बातें हें जो महावीर ने की ही नहीं , और लोग उनके नाम पर प्रचारित करते हें .
महावीर अनोखे थे , महावीर अद्भुत थे , उन्होंने जो कर दिखाया वह तो हमारी कल्पना में ही नहीं आता है , कल्पना में समाता ही नहीं है ,.
हम अपनी ही कल्पनाएँ महावीर पर र्थोपते रहते हें.
यदि महावीर भी हम जैसा ही सोचते और करते तो वे भी हम जैसे ही तो बने रहते ना ? बे परमात्मा कैसे बन पाते ?
यदि हम आज भी महावीर से कुछ नहीं सीखेंगे , मात्र अपनी ही कल्पनाएँ महावीर पर आरोपित करते रहेंगे तो हम भी जैसे हें वैसे ही बने रहेंगे , आगे कैसे बढ़ेंगे , आत्म कल्याण कैसे करेंगे ?
हम यह स्वीकार ही नहीं कर पाते हें क़ि यह भी एक तरीका हो सकता है आत्म क्रांति का , जगत के कल्याण का जो महावीर ने किया .
उन्होंने बाहर कुछ भी नहीं किया , जो कुछ किया अपने में किया , अपने अन्दर किया .
और ठीक भी है ,सभी लोग मात्र स्वयं अपने आप को सुधार लें तो सारी दुनियां सुधर जायेगी .
दूसरे लोग कहाँ आज तक सारी दुनियां की गरीबी मिटा पाए हें , पर यदि प्रत्येक व्यक्ति मात्र अपनी गरीबी मिटाने पर ध्यान दे , तो क्या सारी दुनियां की गरीबी नहीं मिट जायेगी ?
महावीर ने यह़ी किया.
सारी दुनियां को आत्म कल्याण की राह दिखाई .
अपने उपदेश से , अपने व्यवहार से,जीवन से .
वे पर में नहीं उलझे .
अब तक पर में उलझ रहे थे तो संसार में भटक रहे थे , अब स्वयं में सीमित हो गये तो भगवान बन गये .
यदि हमें भी भगवान बनना है तो यह़ी करना होगा .
कविता पढ़ते समय इस बात का ध्यान रखें क़ि प्रारम्भ के 8 दों में उन कामों का उल्लेख किया गया है जो महावीर के द्वारा किये गए माने जाते हें ,जैसे क़ि महावीर के बारे में बात करते हुए हर कोई यह कहता है क़ि -
" जब सारे देश में हिंसा का तांडव न्रत्य हो रहा था , जनता त्राहिमाम कर रही थी , तब उसे मिटाने के लिए और शांति की स्थापना करने के लिए महावीर ने अवतार लिया "
मैंने यहाँ महावीर के समक्ष सबाल उपस्थित किया है क़ि आखिर हिंसा मिटाने के लिए और शांति की स्थापना के लिए आपने किया क्या ?
कुछ भी किया हो ऐसा सुनाई व दिखाई तो देता नहीं है ,हालाँकि वे क्या नहीं कर सकते थे , आखिर राजकुमार थे व चाहते तो राजा भी बन सकते थे .
अरे ! और तो और , कुछ और नहीं तो उपदेश तो दे ही सकते थे .
उनकी कौन नहीं सुनता ?
पर न तो गृहस्थ अवस्था में उपदेश दिया और न ही साधु अवस्था में .
दीक्षा ली तो वन में चले गए , आत्मा में चले गये , आत्म आराधना में लीन हो गए .
प्रारम्भ के 8 पदों में यह़ी सब सबाल उठए गये हें .
बाद के पदों में महावीर का पक्ष प्रस्तुत किया गया है .
क्या वीर का अवतार था ---
(1)
की शांति की स्थापना , औ कष्ट सारे हर लिए
क्या वीर का अवतार था, बस मात्र अन्यों के लिए
(2)
सबने कहा , सबने सुना,वो शांति का अवतार था
उसको धरा के प्राणियों से,वे इन्तिहाँ ही प्यार था
कोई कहे! तब शांति के,उपक्रम उन्होंने क्या किये
क्या वीर का अवतार था, बस जाप जपने के लिए
(3)
चल रही थीं आंधियां , औ घिर उठा तूफ़ान था
हरी भरी इन बादियों में,लालिमा का म्लान था
सब जीव जब अभिशप्त थे, बेमौत मरने के लिए
तब वीर वन में जा बसे,क्या काम करने के लिए
(4)
हिंसा धरा पर व्याप्त थी , सब ओर त्राहिमाम था
अरे धरम के नाम पर , धर्मात्मा ही याम था
भक्षक बने वलवान थे , वा मूक मरने के लिए
तब वीर तुमने क्या किया ,यह दूर करने के लिए
(5)
मामा , पिता भी भूप थे , खुद वीर तुम युवराज थे
धन, राज,वैभव और वल ,सब कुछ तुम्हारे पास थे
जब एक स्वर पर्याप्त था , सब शांत करने के लिए
तब वीर की क्या कैफियत है , मौन धारण के लिए
(6)
वे रोक सकते थे वली , बस एक ही आदेश से
लूट वा अतिचार सब बस , एक ही निर्देश से
तब वीर क्यूं यूं छोडकर , हालात ऐसे चल दिए
तुम्ही कहो रे वीर ये , अवतार था किसके लिए
(7)
क्यों किया ? क्यों वीर तुमने ,काम ऐसा क्यों किया
रे साधकों के नाम को , बदनाम ऐसा क्यों किया
तुम तो चले ओ वीर बस , भगवान बनने के लिए
हमको यहाँ पर छोड़कर , बस जाप जपने के लिए
(8)
थे संत से तुम राजसुत , हर एक को स्वीकार
आदर्श तेरी राह पर , चलने सभी तैयार थे
यूं ही फिर क्यों तुम अकेले,वन की डगर पर चल दिए
वे राह ही तकते रहे , तुम्हारे साथ चलने के लिए
उत्तर -
(9
चिरकाल से संसार में , सुख खोजते थे बे अरे !
वीभत्स रे उस दौर में , उपक्रम तो क्या क्या ना करे
कुछ ना रहा अब शेष था,फिर इक ब़ार करने के लिए
ना वीर का अवतार था , बस मात्र अन्यों के लिए
(10
थम चुकी थी खोज अब ,यह खोज का उत्कर्ष था
एकांत दुःख संसार में , उनका यह़ी निष्कर्ष था
अब क्यों करे कोई जतन , संसार में सुख के लिए
क्या वीर का अवतार था , बस मात्र अन्यों के लिए
(11
जो इष्ट ना अपने लिए , वह अन्य को कैसे करें
कर्तापने की बुद्धि से , संसार में जीवे मरे
उनका तो जीवन था अरे,भाव नाश करने के लिए
ना वीर का अवतार था,बस मात्र अन्यों के लिए
(12
द्रष्टि को जग से हटा , निज आत्मा में थापकर
की धर्म की स्थापना,निज पुन्य पाप विनाश कर
सबको बताया मार्ग यह , संसार हरने के लिए
हाँ वीर का उपकार था ,यह मात्र अन्यों के लिए
(13
उनका यह़ी उपकार था , कुछ ना किया संसार में
कल्याण का यह रास्ता, दिखला दिया व्यवहार में
नहीं और कोई मार्ग है , भव ताप हरने के लिए
यह वीर का उपदेश है , कल्याण करने के लिए
(14
कुछ ना किया उनने अरे , भवि जीव तब भी पा गये
जो छोड़ जग की मोह माया,निज आत्मा में आ गये
पर्याप्त है निज लीनता , भगवान बनने के लिए
यह वीर का उपदेश था , भव पीर हरने के लिए
(१५ )
आओ भविजन आओ निज में,भगवान बन जाएँ सभी
बनना बनाना है किसे , भगवान हैं हम सब अभी
चिरकाल का भवताप का , अभिशाप हरने के लिए
यह वीर का आह्वान था , कल्याण करने के लिए
(16 )
राजा करे तो क्या करे , बस इक देश पर अधिकार है
प्राणियों का भूमि पर , कितना अधिक विस्तार है
महावीर का था चिंतवन , प्रत्येक प्राणी के लिए
हर देश के , हर काल के, हर अज्ञ ज्ञानी के लिए
(17)
वीर तेरी वंदना का , सच्चा सुफल अब पाउँगा
जब छोड़ सब जग दंद मैं , निज आत्मा को ध्याऊंगा
तुमने बताया वीर जो , पथ कल्याण करने के लिए
हम भी लगें उस मार्ग पर , भगवान बनने के लिए
(18)
सच्ची यह़ी इक रीत , पर उपकार करने के लिए
चलकर दिखाया मार्ग , सब संदेह हरने के लिए
फिर भी समझ जो ना सके ,निज कल्याण वे कैसे करें
हो उनका भला स्वकाल में , वे काम अपना कर चले
(19)
कर चले रे वीर तुमने , काम अपना कर दिया
किया प्रकाशित आत्मा,तम मिथ्यात्व का भी हर दिया
रे भव्य ! यह वह कार्य था , जिसके लिए जाने गए
आताप हर , सुख शांति कर , संसार तज शिव को गए
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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