Thursday, June 28, 2012

इस कलिकाल में वीतरागी, सर्वज्ञ का तो विरह है .------तब फिर तेरा क्या लुट गया है ? क्या है जो तुझे प्राप्त नहीं है ? कौन है जो तुझे आत्मानुभव से रोकता है ?-----और फिर तूने इस जीवन में किसी ज्ञानी की खोज के लिए प्रयास ही कब किये हें ?

हे भव्य आत्मार्थी !

इस कलिकाल में वीतरागी, सर्वज्ञ का तो विरह है .
सम्यग्द्रष्टि ज्ञानी का भी संयोग हो या न हो या संभव है संयोग होकर फिर विरह हो जाबे .
यदि अब आज सम्यग्द्रष्टि का संयोग मुझे नहीं है तब वियोग की अपेक्षा तो सम्यग्द्रष्टि और केवली दोनों ही मेरे लिए समान हुए , तब सम्यग्द्रष्टि की क्या आश करूं ,केवली की क्यों नहीं ?
वियोग तो वियोग है , पल भर पूर्व हुआ हो या अनंतकाल पूर्व .
अब यदि अभी संयोग दोनों का ही नहीं है और वाणी दोनों की ही हमारे पास विद्यमान है तो हमारे लिए तो दोनों ही समान ही है न ?
फिर संयोग और वियोग तो अपने आधीन हें नहीं पर अपना भगवान आत्मा अपने साथ है , मैं स्वयं ही तो आत्मा हूँ .
तब क्यों नहीं जहाँ से भी जिसके पास से भी केवली भगवान की और सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा की वाणी सुनने और पढने को मिले , तदनुसार युक्ति और विवेक के अनुसार अपने स्वरूप का निर्णय करले और फिर अपने उस निर्णय का हाजरा हुजूर भगवान आत्मा से मिलान करले .
यदि तीर्थंकर केवली विद्यमान भी हों और हमने उनकी वाणी प्रत्यक्ष भी सुनी हो तब भी तत्व निर्णय की विधि तो यह़ी है .
अब तू ही बतला क़ि यदि अभी तू स्वयं समोशरण में बैठकर ही भगवान की वाणी सुन रहा हो तब भी तू क्या करेगा ? तब भी तो यह़ी करना होगा .
तब फिर तेरा क्या लुट गया है ? क्या है जो तुझे प्राप्त नहीं है ? कौन है जो तुझे आत्मानुभव से रोकता है ?
कदाचित ज्ञानी धर्मात्मा के प्रति ही तेरा अनन्त राग और उनके विरह की वेदना ही तो तुझे विचलित नहीं कर रही है ?
राग तो राग है भाई ! राग तो आग है , किसी के प्रति ही क्यों न हो , वह तो जलाएगा ही .
जो ज्ञानी थे , जिहें तूने ज्ञानी स्वीकार किया था उनका विरह हो गया है .
कदाचित आज भी ज्ञानी विद्यमान हों पर तुझे उनका संयोग न हो .
यह भी संभव है क़ि संयोगवश तुझे उनका संयोग हो भी जाबे और तू उन्हें पहिचान ही न पाए .
आखिर ज्ञानी की पहिचान भी तो ज्ञानी ही कर सकता है न ! अज्ञानी तो कर नहीं सकता .
तब तेरे पास उपाय ही क्या है , तुझे उस ज्ञानी से परिचय कौन कराएगा ?
जो तुझे बतलाये क़ि फलां व्यक्ति ज्ञानी है , उसके स्वयं के ज्ञानी होने का प्रमाण कौन देगा ? यदि वही स्वयं अज्ञानी होगा तो ?
इस प्रकार तो तू जिसे ज्ञानी मान रहा है , उस ज्ञानी और उसके ज्ञान के प्रति तेरी श्रद्धा मात्र एक संयोग ही तो है .
संयोग वशात तुझे इस बात का भरोसा हो गया क़ि फलां व्यक्ति ज्ञानी है या था , तो तेरे पास तो उस ज्ञानी के भी ज्ञानी होने का कोई प्रमाण नहीं है न ?
और फिर तूने इस जीवन में किसी ज्ञानी की खोज के लिए प्रयास ही कब किये हें ?
ऐसे कई लोग हें जिन्हें बहुत लोग ज्ञानी मानते हें, जिनके तत्व निरूपण में भी कोई विपरीतता नहीं है , पर वे ज्ञानी हें या नहीं इस बात की हमने कब परीक्षा करने की कोशिश की है ? हम तो उन्हें दूर से ही अस्वीकार कर देते हें ?
सत्य तो यह है क़ि कोई ज्ञानी (अनुभवी) है या अज्ञानी यह उसकी अपनी निधि है पर यदि वह जिनवाणी के अनुसार तत्व का सच्चा निरूपण करता है तो वह हमारे लिए तो कार्यकारी है और यदि पूर्व में हमने कभी किसी ज्ञानी की देशना सुलभ हुई हो तो सम्यग्दर्शन में निमित्त भी हो सकती है .
अगर हम उक्त तथ्य को स्वीकार नहीं करेंगे तो उस देश और काल में तो तत्व चर्चा का ही लोप हो जाएगा जहाँ कन्फर्म ( certified ) ज्ञानी की उपस्थिति न हो ? क्या आपको या किसी को भी यह इष्ट हो सकता है ?
उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमें अपने द्रष्टिकोण में परिवर्तन करके उचित निर्णय करना योग्य है .

No comments:

Post a Comment