Tuesday, June 26, 2012

क्यों न हम ये काम करें , सम्यग्द्रष्टि की खोज बंद करके स्वयं सम्यग्द्रष्टि बन (हो) जाएँ . शायद यह काम कम मेहनत में किया जा सकता है , क्योंकि इसमें हमें बाहर कुछ भी नहीं करना है , जो कुछ करना है अपने आप में करना है .

‎--------- भाई ! 
आपकी भावना उत्तम है , यदि ऐसा हो ही जाए तो क्या कहने , अपने धन्य भाग्य .
समस्या यह है क़ि यदि सम्यग्द्रष्टि मिल ही जाएँ तो अपन पहिचानेंगे कैसे ?
आखिर ज्ञानी (सम्यग्द्रष्टि) ही ज्ञानी की पहिचान कर सकते हें न ?
हो न हो , हमें मिल ही गए हों ज्ञानी , यह़ी कहीं हमारे इर्द - गिर्द ही हों , पर हम उन्हें पहिचान ही न पाए हों ?
क्यों न हम ये काम करें , सम्यग्द्रष्टि की खोज बंद करके स्वयं सम्यग्द्रष्टि बन (हो) जाएँ .
शायद यह काम कम मेहनत में किया जा सकता है , क्योंकि इसमें हमें बाहर कुछ भी नहीं करना है , जो कुछ करना है अपने आप में करना है .
------- भाई ! यह मुमकिन (possible) ही नहीं , आसान भी है .
तो आओ ! जुट जाएँ , अभी , इसी वक्त !

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