Thursday, June 28, 2012

कहीं तू अपने समाज का नेता तो नहीं बन गया है न ? यदि हाँ ; तो अब तू खतरे में है .

कहीं तू अपने समाज का नेता तो नहीं बन गया है न ?
यदि हाँ ; तो अब तू खतरे में है . 
अब इस जीवन में तेरा कल्याण होना मुश्किल है .
क्योंकि अब तू नेता पद तो छोड़ेगा नहीं , और नेता बनकर समाज को सही मार्ग पर मोड़ देने की क्षमता सभी में नहीं होती है .
यूं ही कैसे छोड़ दे कोई अपनी नेतागिरी , यह कोई आसानीसे थोड़ी मिलती है , कई पीढियां लाग जातीं हें , सारा जीवन समर्पित हो जाता है , कितनी मेहनत , कितना खर्चा ?
फिर कितना मान - सम्मान , कितना यश , कितने अधिकार , सब ओर जयजयकार , सब ओर जलसे और भीड़ .
सब तरफ यस सर ! सब जगह चापलूसी .
फिर तू उन्हें मोड़ने की कोशिश करेगा तो भी सभी मुड़ेंगे भी नहीं , वल्कि तुझे ही मोड़ने का भरपूर प्रयास करेंगे .
समझायेंगे , मनाएंगे , चिरौरी करेंगे ,लोभ और प्रलोभन देंगे तब भी नहीं मानोगे तो डरायेंगे , धमकाएंगे . तुम फिर भी ठीक न हुए तो मारेंगे-पीटेंगे भी और यदि इस पर भी वश नहीं चला तो मार भी डालें तो कोई आश्चर्य नहीं .

No comments:

Post a Comment