बस बस ! बहुत हुआ .
अब ठहर जा सयाने !
खुद बड़ा उदारदिल बना फिरता है और हमें सकीर्ण और स्वार्थी बतलाता है ?
अपने अन्दर झांक कर देख !
तेरी स्वयं की वृत्ति कैसी है .
बातें तो " बसुधैव कुतुम्बिकम " की करता है और अंतर्मन में निरंतर अपना ही ध्यान चलता है .
pls click on link bellow ( blue letters ) to read full -
http://www.facebook.com/pages/Parmatmprakash-Bharill/273760269317272
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