Monday, July 23, 2012

तेरी जो यह भागीदारी करने की भावना है न ! यह तेरी स्वयं के आधे-अधूरे होने की स्वीकृति है -------------------तू जो यह भागीदारी का दस्तावेज साइन करता है न यह तो तेरे आत्म समर्पण का दस्तावेज है . -------------------क्या अब तुझे कुछ भी करने के लिए अपने उस कथित भागीदार से परमीशन नहीं लेनी होगी ? -------------अरे ओ भूले हुए भगवान ! तू इस अनन्त गुलामी में कैसे रह सकता है ?

तेरी जो यह भागीदारी करने की भावना है न ! 
यह तेरी स्वयं के आधे-अधूरे होने की स्वीकृति है .
तू अपने आप में कोई कमी महसूस करता है और दूसरे से भागीदारी करके अपनी वह कमी पूरी करना चाहता है .
पर मेरे भाई !
तू जो यह भागीदारी का दस्तावेज साइन करता है न यह तो तेरे आत्म समर्पण का दस्तावेज है .
यानि क़ि तूने अपने आपको कमजोर मानकर किसी के सामने आत्म समर्पण कर दिया है .
क्या तू ऐसा नहीं मानता है ?
क्या अब तू स्वतंत्र रह गया है ?
क्या अब तुझे कुछ भी करने के लिए अपने उस कथित भागीदार से परमीशन नहीं लेनी होगी ?
तू कहेगा क़ि नहीं ; उसने सारे निर्णय मेरे ऊपर ही छोड़ दिए हें , अब मुझे उससे पूंछने की जरूरत नहीं है .
वाह रे समझदार !
यह भी तो उसकी परमीशन ही तो हुई ?
यदि वह ऐसा न कहता तो ?
अब भी यदि वह फिर से कहता है क़ि "बस एक ब़ार ज़रा पूँछ लिया करो "
तब क्या होगा ? क्या ना कर सकोगे ?
अरे ! यह सिर्फ धंधे-व्यापार में भागीदारी की बात नहीं है .
हमने तो जीवन में कितने लोगों से और वस्तुओं स यह भागीदारी की है .
यह शादी क्या है ?
अनन्त गुलामी .
यह नौकरी क्या है ?
हम कोई वस्तु बेचते हें तो अनेक बंधन ( जो गारंटी और आश्वासन हम देते हें )
हम कुछ खरीदते हें तो अनेकों बंधन ( कुछ शर्तों पर हम कुछ खरीदते हें )

अरे 1 जो वस्तु खरीदी है वही क्या कम बंधन है ?
उसे संभाल कर रखो , मेंटेन करो , अमुक विधि से ही उसका उपयोग करो , उसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता है .
ये बंधन नहीं तो और क्या हें ?
हम जो यह व्यापार करते हें न !
हम समझते हें क़ि हम स्वतंत्र हें , किसी की नौकरी नहीं करते हें .
अरे ! इतने सारे ग्राहकों के तो ----------------------
क्या कहा ? सिर्फ १०-२० या १००-२०० या १०००-२००० ग्राहकों के ---?
अरे ! भ्रम में हो तुम ?
तुम सिर्फ उनके बंधुआ नहीं हो जिन्हें तुमने कुछ बेचा है , वल्कि दुनिया के हर व्यक्ति के बंधुआ हो क्योंकि तुम तो सभी की सेवा करने के लिए प्रस्तुत होकर चौराहे पर , भरे बाजार खड़े हो .
वह तो यह अलग बात है क़ि उनमें से सिर्फ कुछ ही लोगों ने तुम्हारा यह प्रस्ताव स्वीकार किया है .
अरे ओ भूले हुए भगवान ! तू इस अनन्त गुलामी में कैसे रह सकता है ?
इस बंधन में , इतने बोझ तले दबा हुआ कैसे जी सकता है ?
क्या तुझे स्वतन्त्रता की चाहत नहीं ?
यदि है , तो ज़रा विचार कर !
अपनी ओर देख !
आखिर तुझमें क्या कमी है , तू सभी तरह से पूरा तो है !
अपनी इस सम्पूर्णता को पहिचान , स्वीकार कर .
पर से द्रष्टि हटा , अपने आप में स्थित होजा .
तेरा कल्याण होगा ?

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