स्वार्थ को तू हीन वृत्ति मान बैठा है , स्वार्थ तो धर्म का मार्ग है .
स्वार्थी तो सन्यासी होता है , अपराधी नहीं .
तेरे स्वार्थ से किसी का कोई अहित नहीं होता है , यदि तेरे स्वार्थ में द्वेष बुद्धी नहीं है .
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http://www.facebook.com/pages/Parmatmprakash-Bharill/273760269317272
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