" रहिमन मन की व्यथा है , मन ही राखौ गोय "
वाह रहीमदास जी ! सारे जीवन के अनुभवों का निचोड़ २ लाइनों में लिख गए ,और मैं जीवन भर में समझ नहीं पाया .
मैं ही क्या ? क्या कोई भी समझ पाया होगा ?
कहने को तो इतने बड़े संसार में कितने लोग अपने हें ; इतने परिजन , सगे-संबंधी , मित्र , सहकारी , सहचारी , साथ रहने वाले , हमदर्द और न जाने कौन-कौन ; पर एक व्यथा हो तो कोई दिखाई ही नहीं देता क़ि किससे बांटूं .
अरे !
वाह रहीमदास जी ! सारे जीवन के अनुभवों का निचोड़ २ लाइनों में लिख गए ,और मैं जीवन भर में समझ नहीं पाया .
मैं ही क्या ? क्या कोई भी समझ पाया होगा ?
कहने को तो इतने बड़े संसार में कितने लोग अपने हें ; इतने परिजन , सगे-संबंधी , मित्र , सहकारी , सहचारी , साथ रहने वाले , हमदर्द और न जाने कौन-कौन ; पर एक व्यथा हो तो कोई दिखाई ही नहीं देता क़ि किससे बांटूं .
अरे !
व्यथा ही क्या , खुशियाँ भी !
खुशियों का भी यह़ी हाल है , कौन है जिससे बाँट लूं .
कोई समझने में समर्थ नहीं है तो कोई मुझसे असहमत .
किसी की निष्ठाएं बंटी हुई हें तो किसी को मुझ पर आस्था नहीं है .
किसी को मुझसे द्वेष है तो किसी को सहानुभूति नहीं है .
किसी को समझ में आती है तो वह कुछ करने में असमर्थ है .
कोई स्वयं ही परेशान है तो कोई किसी की परेशानी का कारण .
किसी को इसमें मेरे कर्मों का दोष दिखाई देता है तो किसी को कर्मोदय का .
किसी के पास समय नहीं है तो कोई सही समय आने तक इन्तजार करना चाहता है .
सबकी परिस्थितियाँ भले ही भिन्न-भिन्न हों पर एक तथ्य-सत्य है क़ि ऐसा कोई नहीं दिखता जिसके सामने ह्रदय खोला जा सके .
खुशियों का भी यह़ी हाल है , कौन है जिससे बाँट लूं .
कोई समझने में समर्थ नहीं है तो कोई मुझसे असहमत .
किसी की निष्ठाएं बंटी हुई हें तो किसी को मुझ पर आस्था नहीं है .
किसी को मुझसे द्वेष है तो किसी को सहानुभूति नहीं है .
किसी को समझ में आती है तो वह कुछ करने में असमर्थ है .
कोई स्वयं ही परेशान है तो कोई किसी की परेशानी का कारण .
किसी को इसमें मेरे कर्मों का दोष दिखाई देता है तो किसी को कर्मोदय का .
किसी के पास समय नहीं है तो कोई सही समय आने तक इन्तजार करना चाहता है .
सबकी परिस्थितियाँ भले ही भिन्न-भिन्न हों पर एक तथ्य-सत्य है क़ि ऐसा कोई नहीं दिखता जिसके सामने ह्रदय खोला जा सके .
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